आपातकाल जैसी त्रासदी को लोग विस्मृत कर रहे: नरेन्द्र भदौरिया
- आपातकाल की यादें: वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र भदौरिया के साथ
- आपातकाल के दौरान 60 लाख 20 हजार लोगों की नसबंदी कराई गयी
- गांव के निर्धन लोगों ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया
लखनऊ। आपातकाल जैसी त्रासदी को लोग आज विस्मृत कर रहे हैं। आपातकाल के दौरान 60 लाख 20 हजार लोगों की जबरन नसबंदी कराई गयी थी। देश में 42 हजार लोगों ने आन्दोलन किया। उसके पहले 67 हजार लोग जेलों में बंद किये जा चुके थे। ऐसे कठिन समय में गांव लोगों ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया। उस समय 67 प्रतिशत लोगों ने जो आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया, वह सुविधा भोगी लोग घरों में बैठने वाले लोग नहीं थे, वह गांव के निर्धन लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग थे। यह बातें वरिष्ठ स्तम्भकार व लेखक नरेन्द्र भदौरिया ने हिन्दुस्थान समाचार के साथ आपातकाल की यादों को साझा करते हुए कही।
नरेन्द्र भदौरिया ने बताया कि भारत को कम्युनिज्म की तरफ ले जाने का काम इंदिरा गांधी ने किया। यह प्रयास उनके पिता जवाहर लाल नेहरू के समय से हुआ था। इंदिरा गांधी सब तरफ से घिर चुकी थी। घिरने के बाद आपातकाल के सहारे एक छत्र राज तानाशाही कायम करने का विकल्प इंदिरा गांधी ने चुना।
जनता ने इंदिरा गांधी की तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंका
नरेन्द्र भदौरिया ने बताया कि मैं तो उस समय संघर्ष में था। वह दौर मैंने देखा है। उस समय जब कोई जान लेता था कि आपातकाल के खिलाफ काम कर रहे हैं, लोग मुंह फेर लेते थे। ऐसे समय में गरीब भारत ने हुंकार भरी। एक विराट स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आपातकाल के खिलाफ हुंकार भरी। देशभर में सत्याग्रह का निर्णय हुआ। अधिक आयु होने के कारण भी जय प्रकाश नारायण ने नेतृत्व करना स्वीकार किया। देश की जनता ने इंदिरा गांधी की तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंका।
नरेन्द्र भदौरिया ने बताया कि विपक्षी नेता जेलों में बंद थे और डरे हुए थे। इंदिरा को लगा कि इस समय चुनाव में हम जीत जायेंगी। तीन दिन में जनता पार्टी का गठन किया गया। जनता पार्टी सत्ता में आई। उसके बाद इंदिरा गांधी की बी टीम के नेताओं ने दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाया। चुनाव के समय क्या उनको नहीं पता कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है आरएसएस क्या है।
आपातकाल में संघर्ष करने वाले योद्धाओं पर शोध होना चाहिए
आपातकाल की यादें साझा करते हुए उन्होंने कहा कि आपातकाल जैसी त्रासदी को लोग विस्मृत कर रहे हैं। सफाई कर्मचारियों से जबरन नसबंदी कराई जाती थी। उन्नाव में अनुसूचित समाज के जगत वीर नाम के कार्यकर्ता थे। वह डायबिटीज से पीड़ित थे। पैर में गलन होने के बाद उन्हें पुलिस ने छोड़ा। घर आने के पांचवें दिन उनकी मौत हो गई। अकेले उन्नाव में 27 लोग पुलिस की पिटाई के कारण मर गये। आपातकाल में जिन्होंने संघर्ष किया। ऐसे योद्धाओं पर शोध होना चाहिए। उन्होंने बताया कि तानाशाही की मानसिकता में जीने वाले लोग आज भी हैं। अखबार के दफ्तरों में किस विचारधारा के कितने लोग हैं, सब पता है। भारत की आत्मा की आराधना को प्रबल बनाना पड़ेगा।