चंबल हेरिटेज वॉक : वन्य जीव सप्ताह का समापन, औषधीय पौधों, जलचरों व नभचरों से कराया परिचित

औरैया। चंबल विद्यापीठ, हुकुमपुरा द्वारा चलाए जा रहे वन्य जीव सप्ताह समापन के अवसर पर बच्चों को चंबल हेरिटेज वॉक के दौरान पर्यावरण चक्र के बारे में जानकारी दी। बताया गया कि ईको सिस्टम, रेवाइन, प्राकृतिक संपदा, औषधि पौधों, पक्षियों और वन्यजीवों के महत्व एवं संरक्षण के बारे में अवगत कराते हुए जागरूक किया। साथ ही नई पीढ़ी में वन्य जीव और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अभियान चलाकर इनके संरक्षण की शपथ दिलाई गई। वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कलाकृति बनाकर वन्यजीव सह अस्तित्व का पाठ पढ़ाया गया।
वन्य जीव और मानव संस्कृति का संबंध
वन्य जीव और मानव संस्कृति के आपसी संबंध के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया कि ये एक-दूसरे को पारिस्थितिकी तंत्र में मजबूती प्रदान करते हैं। वनों से मिलने वाली औषधियों के बारे में स्थानीय लोगों को बताया कि चंबल क्षेत्र में बड़ी ही आसानी से मिलने वाले भूम्यामलकी का प्रयोग लिवर से संबंधित बीमारियों को दूर करने में होता है। प्रचुर मात्रा में उगने वाली पुनर्नवा, कुश, काश, नल और दर्ब आदि किडनी और मूत्र रोग की रामबाण औषधि है।
जंगली जानवरों के बचाव की दी जानकारी
कुछ ही दिनों पहले इस क्षेत्र में दिखने वाले तेंदुए से भयभीत ग्रामीणों को देवेंद्र सिंह ने बताया, जंगली जानवरों की दिनचर्या समझ लेने के बाद उनसे डरने की जरूरत नहीं है। तेंदुए से बचने के लिए पहले तो हम लोग शाम के समय जंगल में जाने से बचें। हमेशा ग्रुप में जाएं। अगर फिर भी अकेले फंस जाए तो घबराएं नहीं, संयम बनाए रखें। उनकी तरफ अपना मुंह रखे और अगर वो हमला कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में सिर्फ शोर मचाएं और वन विभाग को सूचित करें।
जीवनोपयोगी संसाधन उपलब्ध कराते हैं जंगल
वन और जंगल में रहने के लिए विशेष परिस्थितियों के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. शाह आलम राना ने बताया, जंगल आदिकाल से मानवों को जीवनोपयोगी संसाधन उपलब्ध कराते रहे हैं। इन्हीं संसाधनों का उपयोग कर हम कुछ ही देर में अपने जीवन के लिए उपयोगी साधनों का निर्माण करें और सुरक्षित रहें। खुले जंगल में यदि रात बितानी है तो अपने आसपास खाने की चीजें न रखें और अपना बिस्तर ऊंचाई पर बनाएं।
आयुर्वेद चिकित्सा में जंगल हैं सहायक
डॉ. कमल कुमार कुशवाहा ने बताया कि प्राचीन काल में आयुर्वेद चिकित्सा खुले जंगलों में की जाती थी। उस समय यदि किसी का ऑपरेशन करना होता था तो काटने के लिए मूंज और दाब का ब्लेड की तरह प्रयोग किया जाता था। सिलने के लिए चींटे का प्रयोग किया जाता था, जो कि आधुनिक कैट गट नामक धागे की तरह काम करता था।