प्रकृति को बचाने के लिए स्वच्छता की तरह एक वृहद जागरूकता अभियान की जरूरत

- प्रकृति प्रेमियों की नजर में कानून से नहीं बचा सकते प्रकृति को
- यदि नहीं चेते तो ऐसे ही कभी बारिश, कभी सूखे का झेलना पड़ेगा प्रकोप
लखनऊ। प्रकृति को बचाना सिर्फ सरकार का विषय नहीं, इसके लिए आमजन को आगे आना होगा। हर व्यक्ति को इसके महत्व को समझना होगा, वरना इसी तरह से जून तक बारिश न होना और अक्टूबर में बेमौसम झमाझम बारिश की प्रक्रिया होती रहेगी। यह प्रकृति का संकेत है। यदि हम अभी नहीं सुधरे तो हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। यह कहना है, प्रकृति प्रेमियों व समाज सेवियों का।
गोमती सहित कई नदियों को बचाने के लिए पद यात्रा कर चुके समाजसेवी व भाजपा नेता चंद्रभूषण पांडेय का कहना है कि यह विडंबना ही है कि हम हेलमेट का प्रयोग अपनी सुरक्षा की दृष्टि से नहीं, पुलिस से बचने की दृष्टि से करते हैं। यह मानव स्वभाव है, जब तक हम खुद विपदा में नहीं फंसते तब तक हमें इसका भान नहीं होता। हम पर कोई विपत्ति न आये, इसके लिए हमें पहले ही सचेत होने की जरूरत है। प्रकृति को बचाने, उसके प्रति हर एक को जागरूक करने के लिए वैसे ही अभियान चलाना चाहिए, जैसे स्वच्छता के लिए चलाया गया।
उन्होंने कहा कि यदि प्रकृति नहीं रही तो हमारा अस्तित्व स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। हमें खुद के लिए प्रकृति को बचाना है। यह हर व्यक्ति को समझाने की जरूरत है। प्रकृति की भी सहन करने की एक सीमा है। वह अब समाप्त होती जा रही है। यही कारण है कि पिछले वर्ष बारिश ने तबाही मचाई तो इस वर्ष पहले सूखा और अब बारिश के कारण परेशानी बढ़ गयी।
समाजसेवी अजीत सिंह का कहना है कि हमें पौधरोपण से ज्यादा पौधों को बचाने पर ध्यान देना होगा। आज एक फैशन बन गया है पौधरोपण कर उसके साथ फोटो खिंचवाने का। हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि जो पौधे लगें, वे पेड़ बने। इसके साथ ही प्रकृति से प्रेम हर व्यक्ति में पैदा करने की जरूरत है। बुंदेलखंड में पानी को बचाने के लिए काम करने वाले संजय सिंह का कहना है कि सरकार ने भवनों पर जल संचयन संयत्र लगाने के लिए नियम बनाये, लेकिन उसका कितना पालन होता है। यह हम सभी देख रहे हैं। इसके प्रति कानून बनाने से नहीं, जागरूक करने की जरूरत है। कानून व्यक्ति में डर पैदा करता है, जबकि जागरूकता उसके प्रति प्रेम पैदा करेगा।