जल के नीचे मानव की गतिविधियों के अवशेष बिखरे पड़े हैः प्रो. आलोक त्रिपाठी
लखनऊ। उ.प्र. राज्य संग्रहालय की ओर से आयोजित ‘कला अभिरूचि पाठ्यक्रम’ की श्रृंखला में आज यानि शुक्रवार को ‘हेरिटेज अन्डरवॉटरः देयर सर्च, स्टडी एण्ड प्रिजरवेशन’ विषय पर व्याख्यान हुआ। मुख्य वक्ता नई दिल्ली स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अपर महानिदेशक एवं राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा अनुसंधानशाला, लखनऊ के महानिदेशक प्रो. आलोक त्रिपाठी ने पावर प्वाइन्ट के माध्यम से रूचिकर व्याख्यान दिया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ. मीनाक्षी खेमका ने मुख्य वक्ता के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अन्तः जलीय पुरातत्व खोज में प्रो. आलोक त्रिपाठी का योगदान एक नये अध्याय की शुरूआत है।
वक्ता प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा जलाच्छादित है जिसमें मानव की गतिविधियों के अवशेष बिखरे पड़े है। इनकी खोज, अध्ययन एवं संरक्षण एक कठिन कार्य है। अन्तः जलीय पुरातत्वविद् सागर की गइराईयों में जाकर आधुनिक तकनीक एवं वैज्ञानिक यन्त्रों की सहायता से इस धरोहर की खोज एवं उनके अध्ययन से मानव इतिहास को समझने का प्रयास करते है। हजारों वर्षो तक जलमग्न रहने वाले इन अवशेषों का संरक्षण एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। कई बार अनुकूल परिस्थितियां होने पर ये अवशेष यथावत सुरक्षित रह जाते है जो कि अन्य अवस्थाओं में संभव नही है। जल के नीचे कार्य करने के लिए विशेष उपकरणों, प्रशिक्षण एवं दृृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।
कार्यक्रम के अन्त में संग्रहालय के निदेशक डॉ. आनन्द कुमार सिंह ने वक्ता को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आज के विषय में विद्वान वक्ता द्वारा अन्तः जलीय पुरातत्व के विषय में बहुत ही सारगर्भित व्याख्यान दिया गया, जिससे निश्चय ही कलाकृतियों को सुरक्षित रखने में हमें सहायता प्राप्त होगी। इस अवसर पर डॉ0 विनय कुमार सिंह, शारदा प्रसाद त्रिपाठी, डॉ0 अनिता चौरसिया, धनन्जय कुमार राय, प्रमोद कुमार सिंह, शालिनी श्रीवास्तव, अनुपमा सिंह, गायत्री गुप्ता, नीना मिश्रा, बृृजेश यादव, सुरेश कुमार, सत्यपाल एवं परवेज़ आदि उपस्थित रहे।