भारत-मॉरीशस की साझा भोजपुरी लोक संस्कृति को पुनर्स्थापित करना ध्येय: राजमोहन

- सरनामी भोजपुरी गायक की टीम ने कुशीनगर के लोकरंग में तीसरी बार की शिरकत
कुशीनगर। नीदरलैंड निवासी व दुनिया भर में सरनामी भोजपुरी गायन को प्रसिद्धि दिलाने वाले गायक राजमोहन हरदीन का ध्येय भारत-मॉरीशस की साझा भोजपुरी लोक संस्कृति को पुनर्स्थापित करना है। भोजपुरी के साथ साथ पॉप गायकी में भी अपने हुनर के लिए फिजी, गुयाना व नीदरलैंड में मशहूर राजमोहन भारत से गिरमिटिया रूप में मॉरीशस गए मजदूर की तीसरी पीढ़ी की संतान हैं। राजमोहन शनिवार को कुशीनगर के फाजिलनगर के जोगिया जनेबी पट्टी गांव में आयोजित लोकरंग-2022 में भोजपुरी गिरमिटिया गायकों के साथ तीसरी बार शरीक हुए।
राजमोहन साल 2019 के लोकरंग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए नीदरलैंड के उत्रेच शहर में सांस्कृतिक कार्यक्रम (कन्सर्ट) आयोजित किया। राजमोहन के प्रयासों के चलते हजारों की संख्या में भोजपुरी बहुल देशों के लोग अपने पुरखों की धरती पर आयोजित होने वाले लोकरंग कार्यक्रम से लाइव जुड़ते है। भारत से सुदूर देश गए राजमोहन अपने पूर्वजों के जिक्र पर भावुक हो जाते हैं।
पूर्वजों को समर्पित बैठक गाना का उल्लेख करते हुए राजमोहन बताते हैं कि 1873 में ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने उपनिवेशों में गन्ने कहवा और कपास की खेती के लिए पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के तकरीबन 35000 युवा मजदूरों को कलकत्ता से पानी के जहाजों पर लाद कर पांच साल के अनुबन्ध पर डच उपनिवेश सूरीनाम ले जाया गया था। तब सूरीनाम नीदरलैंड के अधीन था। सूरीनाम से केवल तिहाई मजदूर ही अनुबंध ख़त्म होने के बाद देश लौट पाए और शेष वहीं बस गए।
पूर्वजों ने भारतीय भोजपुरी संस्कृति के साथ साथ डच संस्कृति को भी आत्मसात किया। जाति पाति की दीवार छोड़ रिश्ते बनाए। डच लड़कियों से शादी कर और उस देश को अपना मूल देश मानते हुए तरक्की का रास्ता अपना कर जीवन यापन शुरू कर दिया। बावजूद इसके भारत मूल के निवासी भारतीय संस्कृति को वहां ज़िंदा रखा। भारतीय संस्कृति के अनुसार तिलक, मटकोड़वा, हल्दी, पितर नेवता, कोहबर, मंगल गीत, छठियार, बरही आदि भारतीय परंपरा के अनुरूप सम्पन्न होते हैं। पूर्वजों के भारतीय वंशजों की खोजखबर के सम्बंध में राजमोहन ने समय की कमी बताया। बताया कि वह पूर्वजों की तीसरी पीढ़ी की संतान हैं। परदादा और परनाना नीदरलैंड गये थे। देश वापसी के सवाल पर राजमोहन बोले कि जब उस समय भारत के हमारे सम्बन्धियों ने सुधि नहीं ली तो अब क्या गुहार लगाना। हम बस इतना जानते हैं कि भारत हमारे खून में है और हम भारतीय हैं। अब हमें किसी से कोई शिकवा नहीं । हमारा मकसद भोजपुरी को बढ़ाना है, जिससे हमारी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी रहे।
सात समंदर पार से सहयोग गौरव की बात: लोकरंग के आयोजक वरिष्ठ कथाकार व लेखक सुभाष कुशवाहा का कहना है कि लोकरंग सांस्कृतिक संस्था के लिए यह गौरव की बात है कि सात समंदर पार से गिरमिटिया के वंशज सहयोग दे रहे हैं। वे अपने खर्चे पर कई देशों से सांस्कृतिक टीमें लाते रहे हैं। स्वयं राजमोहन तीसरी बार लोकरंग में आए हैं। लोकरंग अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपना स्थान बना रहा है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि अंग्रेजों द्वारा विदेशों में ले जाये गये विभिन्न देशों के कलाकार निजी प्रयासों से पूर्वांचल की धरती पर कभी आए हों। उन्होंने बताया 2019 के लोकरंग को गिरमिटिया महोत्सव के रूप में मनाया गया।