सिंचाई विभाग ने वर्ष 2022 में किया कुशल बाढ़ प्रबंधन
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने विभागीय कार्यों की समीक्षा में बाढ़ प्रबंधन पर जोर दिया और विभागीय अधिकारियों से जो वायदा लिया उसे उन्होंने पूरा कर जोरदार परिणाम भी दिये। बाढ़ प्रबंधन के कारण प्रतिवर्ष होने वाले करोड़ों रुपये की क्षति को वर्ष 2022 में सिंचाई विभाग योजनाबद्ध तरीके से रोकने में सफल रहा है।
वर्ष 2022 में जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने शपथ लेने के बाद ही उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मुख्यालय में औचक निरीक्षण किया। विभागीय अधिकारियों को चेतावनी दी कि अधिकारी, कर्मचारी सुबह तय समय पर अपनी कुर्सी पर बैठ जाएं। सिंचाई विभाग के मुख्यालय में अधिकारियों के तय समय पर आने-जाने से हलचल दिखने लगी और बदली परिस्थितियां कार्ययोजना, गति, परिणाम की ओर बढ़ चली।कुछ ही माह में इसके बेहतर प्रबंधन के रूप में रिजल्ट सामने आने लगे।
बाढ़ परिदृश्य के अनुसार उत्तर प्रदेश में बाढ़ से प्रभावित होने वाला अधिकतम क्षेत्र 72.50 लाख हेक्टेयर है। जिसमें बाढ़ से सुरक्षित किए जाने वाले योग्य क्षेत्र 58.72 लाख हेक्टेयर और बांधों के निर्माण से सुरक्षित किया गया क्षेत्र 22.94 लाख हेक्टेयर है। वहीं बाढ़ से सुरक्षा के लिए निर्मित तटबंध 533 अदद उपलब्ध हैं।
सिंचाई विभाग ने संभाला मोर्चा, बेहतर परिणाम आए सामने
उप्र सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता परिकल्प व नियोजन नरेश चंद्र उपाध्याय ने बताया कि बाढ़ के समय विभाग का प्रत्येक अधिकारी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए मौके पर मौजूद रहकर किसी भी परिस्थिति से लड़ने को तैयार रहता है। वर्तमान समय में विभागीय मंत्री ने महत्वपूर्ण समीक्षा बैठकें ली और जिसमें सामने आया है कि पहले से अभी की स्थिति बेहतर से बेहतर हुई हैं। हम बाढ़ से निपटने के लिए पहले से तैयारी करते हैं और उसके बेहतर परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
सिंचाई विभाग से मिले आंकड़ों पर नजर डाले तो उत्तर प्रदेश में बाढ़ से प्रभावित होने वाले 24 अतिसंवेदनशील जनपद हैं। वहीं 16 जनपद संवेदनशील श्रेणी में रखे गए हैं। उत्तराखंड और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में उतरने वाली नदियां अपने साथ बड़ी मात्रा में सिल्ट लाती है और यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में बाढ़ की विभीषिका उत्पन्न होती है। प्रतिवर्ष प्रदेश में विशेष तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश में जन-धन हानि के साथ कृषि क्षेत्र के कटान की संभावनाएं बनी रहती हैं।
ये जिले हैं अति संवेदनशील
अधीक्षण अभियंता (बाढ़) हरीओम गुप्ता ने बताया कि अति संवेदनशील बाढ़ प्रभावित जनपदों में पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, अयोध्या, अंबेडकर नगर, बस्ती, संतकबीरनगर, आजमगढ़, गाजीपुर, मऊ, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बिजनौर, बदायूं, फर्रुखाबाद, बलरामपुर, श्रावस्ती और महाराजगंज जनपदों के नाम शामिल है। बाढ़ के वक्त इन सभी जनपदों की स्थिति बेहद खराब हो जाती है। ये जनपद विभाग की प्राथमिकता में रहते हैं।
ये जिले हैं संवेदनशील
इसी तरह प्रदेश में 16 संवेदनशील जनपद जिन्हें घोषित किया गया है, उनमें उन्नाव, बुलंदशहर, लखनऊ, बरेली, हमीरपुर, सहारनपुर, शामली, अलीगढ़, गौतमबुद्धनगर, शाहजहांपुर, रामपुर, मुरादाबाद, हरदोई, कासगंज, प्रयागराज, वाराणसी का क्षेत्र आता है। ये जनपद के कृषकों को बाढ़ से बड़ी समस्याएं होती है।
चंबल से 26.44 लाख क्यूसेक प्रवाह गंगा नदी में पहुंचा
वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में बहने वाली चंबल नदी में अब तक का उच्चतम डिस्चार्ज 26.44 लाख क्यूसेक का प्रवाह सामने आया है। चंबल नदी का वृहद जल प्रवाह विभिन्न जनपदों की सीमाओं को छूती है। जल प्रवाह जनपद आगरा से होते हुए इटावा में यमुना नदी में मिल जाता है जो औरैया, जालौन, कानपुर देहात, हमीरपुर, बांदा जैसे जनपदों से होते हुए प्रयागराज में गंगा नदी में समाहित होता है। यह प्रवाह गंगा नदी में मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया होते हुए बिहार राज्य में प्रवेश कर जाता है।
सरजू जो घाघरा नदी भी कहलाती है, उसमें मानसून की समाप्ति के समय उच्चतम डिस्चार्ज 5.33 लाख क्यूसेक का प्रवाह रहा है। इसी समय राप्ती नदी में 1.56 लाख क्यूसेक का अधिक डिस्चार्ज रहा है।
प्लानिंग के चलते बाढ़ में भी नहीं हुआ नुकसान
सिंचाई विभाग में प्लानिंग डिवीजन की सक्रियता ही है कि बाढ़ के बाद ज्यादा नुकसान वाले परिणाम नहीं सामने आ रहे हैं। बाढ़ के पहले की तैयारियों, कुशल निगरानी, नदी में पानी बढ़ने पर होने वाली तैयारियों, बाढ़ प्रबंधन, विभागीय बैठकों में समीक्षा व समाधान पर चर्चा से बाढ़ से कुशलता पूर्वक निपटा जा रहा है।