जब इंद्रिय विषयों के जंगल में आनंद लेने लगती है, उसी समय जीव के जीवन में पूतना रूपी विपत्ति आती है-डॉ अनिल पांडेय”व्यास जी”
अमेठी। टीकरमाफी में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिन कथा व्यास भागवत रत्न मानस राजहंस डॉक्टर अनिल पांडे व्यास जी ने कहा कि नंद बाबा जब तक गोकुल में भगवान की सेवा में रहे तब तक गोकुल में पूतना का प्रवेश नहीं हुआ जैसे ही नंद बाबा कंस की सेवा में चले गए गउऐ जंगल में चरने चली गई तभी गोकुल में पूतना ने प्रवेश किया। माने जीव जब भगवान को भूलकर मोहमाया प्रपंच में चला जाता है, तथा इंद्रिय विषयों के जंगल में आनंद लेने लगती हैं उसी समय जीव के जीवन में पूतना रूपी विपत्ति आती है। पूतना चतुर्दशी को आती है क्योंकि शरीर के 14 स्थानों पर पूतना आक्रमण करती है। पांच इंद्रियां पांच कर्मेंद्रियां, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार। पूतना का अर्थ होता है पूत माने पवित्र ना माने नहीं अर्थात जो पवित्र नहीं है वही अपवित्र है। गीता में भगवान कहते हैं नहीं ज्ञानेंन सद्रुश पवित्र मिह विदते, नहीं कोऊ पावन ज्ञान समाना,सबसे ज्यादा पवित्र ज्ञान तो अपवित्र अज्ञान जीव का अध्ययन ही पूतना है। कथा कार्यक्रम में आयोजक मंडल के विनोद श्रीवास्तव प्रमोद श्रीवास्तव, अरविंद श्रीवास्तव ,संतोष श्रीवास्तव सुशील श्रीवास्तव डा शरद श्रीवास्तव ने आए हुए आगंतुकों का स्वागत किया। भागवत कथा व्यास के पंचम दिन मुख्य यजमान भगवंत किशोर लाल श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव,। अनिल भदौरिया संजय पांडे, सहित भारी संख्या में श्रोताओं ने संगीत में कथा का आनंद उठाया।