कला के क्षेत्र में हिन्दी का अभाव रहा है, हिंदी में अंग्रेजी की अपेक्षा कला पर पुस्तकें कम हैं

- हिन्दी दिवस पर कलाकारों ने रखे अपने विचार
लखनऊ। कला के क्षेत्र में ख़ास तौर पर दृश्यकला में हिन्दी का विशेष अभाव रहा है। अमूमन साहित्यकारों, कवियों ने इस विधा में जो भी लेखन किया है, वही रहा है। कलाकारों की अपेक्षा साहित्यकार का योगदान ज्यादा रहा है। हालांकि आज कुछ कला समीक्षक इस विधा में भी लेखन कार्य कर रहे हैं लेकिन कम है। हिंदी में अंग्रेजी की अपेक्ष कला पर पुस्तकें भी कम हैं।
युवा चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि हिन्दी दिवस के अवसर पर बुधवार को सप्रेम संस्थान और अस्थाना आर्ट फ़ोरम की तरफ से ऑनलाइन ‘कला लेखन और आम आदमी तक कला पहुंचाने में हिंदी का महत्व‘ पर कुछ कलाकारों, लेखकों के विचार संग्रह करने की कोशिश की, जो यहां प्रस्तुत किया गया है।
विशिष्ठ कला आलोचक अखिलेश निगम ने कहा कि हिन्दी हमें आमजन तक पहुंचाती है। इसीलिए हिन्दी कला लेखन और संवाद कला को आमजन तक पहुंचाने में एक सीमा तक सहायक रहा है। कला विकास के लिए हिन्दी एक उपयोगी भाषा है।
वरिष्ठ समीक्षक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय कहते हैं कि चाहे हमारे धार्मिक ग्रंथ हो जो साहित्यिक ग्रंथ ही हैं या हमारे गद्य और पद्य के साहित्यिक ग्रंथ, ये सभी हमारी कला के आधार हैं। हमारे यहां कृष्णलीला और राम लीला पत्थरों से लेकर कागज़ की भित्तियों पर उकेरी गई। वाल्मीकि रामायण और भागवत से लेकर केशव के कवित्त, और बिहारी के दोहों से लेकर तमाम रीतिकालीन कवियों की रचनाओं के आधार पर। लेकिन इन पर आधारित विशेषकर लघुचित्रों का विश्लेषण प्रायः अंग्रेज़ी में हुआ। आज सर्वाधिक आवश्यकता कला लेखन हिंदी में करने की है ताकि हम हमारे कला शिल्प,स्थापत्य और चित्रांकन के मर्म से साक्षात्कार कर सकें।
ग़ाज़ियाबाद से कला लेखक, समीक्षक वेद प्रकाश भारद्वाज कहते हैं कि कला में हिंदी का महत्व कला सम्बंधित लेखन से ही आंका जा सकता है। एक लंबे समय तक दैनिक समाचार पत्रों से लेकर दिनमान, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसे पत्रिकाओं ने हिंदी में कला लेखन को समृद्ध किया। पर अब इस तरह की पत्रिकाएं नहीं रहीं। दैनिक अखबारों में भी कला लेखन की जगह लगभग समाप्त ही है। क्षेत्रीय अखबारों में जरूर कला पर लेखन नजर आ जाता है।
लखनऊ से वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल कहते हैं कि प्रत्येक कलाकार को अपनी एक अलग आकारों और प्रतीकों की भाषा का सृजन करना आवश्यक हो जाता है।
युवा चित्रकार फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि हमें सामाजिक, राजनीतिक या सरकारी रूप से नहीं बल्कि दिल से अपनी भाषा हिन्दी को सम्मान देना होगा। ये भी एक कड़वा सच है कि हिन्दी में दृश्य कला के ऊपर ना के बराबर पुस्तक मिलती हैं, जबकि हर प्रकार से ये एक बहुत बड़ा श्रोता, दर्शक या बाज़ार वर्ग है जिसकी हम लगातार उपेक्षा कर रहे हैं।
प्रसिद्ध रंगकर्मी ललित सिंह पोखरियाल कहते हैं कि अगर हम भारत के हिन्दी भाषा भाषी क्षेत्र की बात करें तो हिन्दी लगभग 150 वर्षों से सर्वग्राही भाषा रही है। और भारतीय चित्रकला में भी इसी कालखण्ड में राजा रवि वर्मा के यथार्थवाद के बाद अलग-अलग वादों में सर्जना हुई है। मैं यह बात निःसंकोच कह सकता हूँ चित्रकला के मैंने जो जो भी आयाम देखे, उनसे जो संवेदना , जो विचार मैंने ग्रहण किये हैं वे हिन्दी में ही मेरे मन-मस्तिष्क तक पहुँचे हैं। मुझे लगता है कि उत्तर भारतीय चित्रकला के रंगों की, रंगों की तीव्रता और छाया की जो भाषा है, जो सम्वेदना है उसमें तथा हिन्दी भाषा के चरित्र और सम्वेदना में बहुत बड़ी समानता है।
नई दिल्ली से कला लेखक सुमन कुमार सिंह कहते हैं कि कला की दुनिया में हिंदी के प्रयोग की बात करें तो हम जानते हैं कि भारतीय भाषाओं में हमारे यहां कला एवं शिल्प पर दर्जनों महत्वपूर्ण ग्रंथ रचे गए हैं। वहीं बहुत सारी पुस्तकों का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद भी किया गया है। विष्णुधर्माेत्तरपुराण का चित्रसूत्र इसका एक उदाहरण भर है। बीसवीं सदी की बात करें तो बासुदेव शरण अग्रवाल, वाचस्पति गैरोला, राय कृष्ण दास जैसे अनेक विद्वानों ने हिंदी में कला विषयक पुस्तकें लिखी हैं। आधुनिक कला की चर्चा करें तो प्रयाग शुक्ल, विनोद भारद्वाज जैसे कई नाम हमारे सामने हैं, जो मौजूदा समय में भी निरंतर सक्रिय हैं। इसी कड़ी में हम अशोक भौमिक, अवधेश अमन, भुनेश्वर भास्कर, विनय कुमार, ज्योतिष जोशी जैसे दर्जनों नाम ले सकते हैं। मेरी समझ से हिंदी में कला लेखन करनेवालों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद।
लेकिन इन सबके बावजूद एक तथ्य यह भी है कि आज अधिकतर कलाकार और कला दीर्घाएं अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं। इसके पीछे अक्सर उनका तर्क होता है कि धनाढ्य वर्ग हिंदी के बजाए अंग्रेजी का प्रयोग ज्यादा करते हैं। और कलाकृतियों के खरीदार चूंकि उसी वर्ग से आते हैं,इसलिए प्रदर्शनियों के कैटलॉग ज्यादातर अंग्रेजी में ही तैयार किए जाते हैं। ऐसे में देखा जाता है कि उन दीर्घाओं या कलाकारों की मांग पर हिंदी के लेखक भी या तो अंग्रेजी में लिखने को मजबूर हो जाते हैं, या अपने लेख का अंग्रेजी अनुवाद करवाते हैं। ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि कला लेखन के क्षेत्र में अंग्रेजी को वरीयता मिलती ही रहेगी।
कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ के पूर्व प्रधानाचार्य आलोक कुशवाहा ने कहा कि कला स्वयं में ही एक गुढ एव सबसे अधिक प्रभावशाली भाषा है परंतु कला की चर्चा के लिए हिंदी उत्तर भारत में एक उपयुक्त माध्यम है। अगर हमें कला चर्चा को आम लोगों तक पहुंचाना है तो उसकी संप्रेषणयत्ता को बढ़ाना होगा। इसे आम भाषा अर्थात हिंदी में ही होना पड़ेगा। .हमारे सामने उदाहरण है. गौतम बुद्ध ;महावीर तथा अनेक ऐसे विचारक जिन्होंने अपने विचारों के द्वारा समाज में एक क्रांति पैदा की। उन्होंने आम जन की भाषा को ही चुना. ऐसा ही आचार्य तुलसी दास , संत कबीर आदि ने भी किया, जिसके कारण उनकी रचनाएं और विचार लोगों तक पहुंचे।
नई दिल्ली से चित्रकार व कला समीक्षक रविन्द्र दास कहते हैं कि हालांकि हम सब जानते हैं आधुनिक कला मात्र अंग्रेजी भाषी अभिजात्य वर्ग का ही शौक रहा है फिर भी हिंदी दिवस पर हिंदी भाषी कलाकारों का ये सपना तो होता ही है काश देशी और विदेशी कला की पुस्तकें हिंदी में भी उपलब्ध होती और गैलरीयों के कैटलाग हिंदी में होते ।
ग़ाज़ियाबाद से ही चित्रकार व कला समीक्षक जय प्रकाश त्रिपाठी कहते हैं कि कला के क्षेत्र में हिंदी लगातार बढ़ रही है। हिंदी से कला जगत निरंतर तरक्की कर रहा है। हिंदी के अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो, या हिंदी सिनेमा अथवा दृश्य एवं कला की अन्य विधाएं हो, हर क्षेत्र में हिंदी लोकप्रियता के नए मानदंड स्थापित कर रहा है। यहां तक कि विज्ञापन जगत में भी हिंदी की धूम है।
मूर्तिकार राजेश कुमार कहते हैं कि जन जन तक कला तत्व को पहुंचाने में हिंदी का विशेष महत्व है। हिंदी भाषा में जो माधुर्य, लालित्य और शब्दों का संसार है,इसे समृद्ध बनाती है, फिर हम क्यों हिंदी के साथ खड़े नहीं हो पाते। चिंता का विषय है।
गिरीश पाण्डेय कहते हैं कि कला भाव की अभिव्यक्ति है और कला स्वयं एक भाषा है। कला अभिव्यक्ति के लिए शब्द एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। भाषा भी ध्वनि से शब्द रूप में भाव को ही अभिव्यक्त करने का माध्यम हैं। हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जिसमें संकेत, भाव, एवं ध्वनि के लिए भी वर्ण और अक्षर हैं। विश्व में यदि सबसे समृद्ध कोई भाषा है, तो वह हिन्दी ही है।