यूपी फतह की तैयारी… पूर्वांचल से परचम लहराने की जुगत में शाह तो यादव लैंड में अखिलेश एक्टिव

उत्तर प्रदेश में नया साल शुरू होते ही समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं. जिसके तहत भाजपा ने राज्य में बीते लोकसभा चुनावों में हारी हुई सीटों को भी इस बार अपनी झोली में डालने का प्लान तैयार किया है. साल 2014 और 2019 में भाजपा को यूपी में ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम रोल निभाने वाले अमित शाह इन हारी हुई सीटों पर पार्टी का परचम फहराने के लिए इसी महीने दो दिन (16 और 17 जनवरी) पूर्वांचल से वेस्ट यूपी तक की सियासी जमीन को मथेंगे. वहीं दूसरी तरफ सपा मुखिया अखिलेश यादव राज्य में पहली बार इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, औरैया, फर्रुखाबाद और कन्नौज में पूरी शिद्दत के साथ फोकस करते हुए इन जिलों के हर गांव में युवाओं से सीधे जुड़ कर वहां भाजपा को रोकने की मुहिम में जुट गए हैं.
अखिलेश की इस पहल को सियासी नजरिए से अहम माना जा रहा है, क्योंकि अभी तक यादव लैंड को मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल का समर्थक माना जाता रहा है. ऐसे में अब आगामी लोकसभा चुनावों के पहले ही मुलायम का गढ़ रहे यादव लैंड पर भाजपा और सपा के बीच तीखी सियासी जंग शुरू होने का अनुमान लगाया जाने लगा है. क्योंकि भाजपा ने भी यादव लैंड में अपना भगवा ध्वज फहराने के लिए अपने प्रयास में तेजी लानी शुरू कर दी है. जिसके तहत ही अमित शाह यूपी में आ रहे हैं. उनके आने से यूपी की सियासत में गर्माहट आएगी, क्योंकि पिछले चुनाव में अमित शाह की पहल पर ही सपा से नाराज होने वाले तमाम कद्दावर नेताओं को भाजपा से जोड़ा गया था. फिर उन्हें संगठन के साथ सियासी मैदान में उतार कर भाजपा ने नया संदेश देने का काम किया था और इसका लाभ भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला था.
ठंड में पसीना बहा रहे दल
चुनावी आंकड़े भी इसका सबूत देते हैं. इन आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में हुए लोकसभा के चुनाव में भाजपा गठबंधन ने यूपी में 80 में 64 सीटें जीती थीं, जो 2019 के मुकाबले 9 कम थीं. नतीजों में इस अंतर की एक बड़ी वजह करीब ढाई दशक बाद यूपी में हुआ सपा-बसपा गठबंधन बताया जा रहा है. अगर यह गठबंधन न हुआ होता तो भाजपा को और ज्यादा सीटों पर जीत हासिल होती. अब भाजपा ने यूपी में हारी हुई 16 सीटों के नतीजों को बदलने पर मेहनत शुरू कर दी थी. पिछले साल जून में हुए उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर सीट अपने खाते में डाल कर संख्या 66 कर ली. अब बची हुई 14 सीटों पर नतीजे बदलने के लिए पार्टी ठंड में भी पसीना बहाने का फैसला किया है.
भाजपा नेताओं के अनुसार, पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह आगामी 16 जनवरी को अंबेडकरनगर और बलरामपुर में रहेंगे, फिर 17 जनवरी को वह सहारनपुर और बिजनौर का दौरा करेंगे. जिन चार जिलों में अमित शाह का दौरा तय किया गया है वहां की चार संसदीय सीटें बसपा के पास हैं, जिन्हे सपा की मदद से बसपा ने जीता था. लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के बाद अमित शाह का यूपी में यह पहला सियासी दौरा है. अपने इस दौरे के दौरान अमित शाह यूपी में सभी 80 सीटों पर भाजपा की झोली में लाने का प्लान पार्टी नेताओं के बीच डिस्कस करेंगे और बीते लोकसभा चुनावों में हारी सीटों को जीतने के लिए क्या करना है? यह बताएंगे.
यादव लैंड में सक्रिय हुए अखिलेश
भाजपा की इस रणनीति को असफल करने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी अब कमर कस ली है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के अनुसार, पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत ने उपचुनावों में भाजपा के तमाम प्रयासों को असफल कर दिखा दिया है कि यूपी में सपा ही भाजपा को रोक सकती है. पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के बाद भाजपा ने मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह के शिष्य रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया और वह बुरी तरह से हारे. इटावा के उपचुनाव ने पार्टी (सपा) ने अपनी रणनीति बदली. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने राग द्वेष भुलाकर चाचा शिवपाल से मनमुटाव खत्म किया और उनके साथ मिलकर घर-घर चुनाव प्रचार भी किया और डिंपल यादव रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीतीं.
उपचुनाव में मिली इस जीत के बाद से अखिलेश यादव इस इलाके में लगातार सक्रिय हैं. वह विधानसभा क्षेत्रवार लोगों से मिल रहे हैं. अभी तक इस इलाके के ज्यादातर लोगों की पहुंच परिवार के अन्य सदस्यों तक थी, पर अब अखिलेश यादव सभी को खुद से जोड़ने के अभियान में जुटे हैं. जिसके चलते ही उन्होंने मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद, औरैया, कन्नौज और फर्रुखाबाद में अपनी सक्रियता बढ़ाई है. इन जिलों में यादव मतदाताओं का एक बड़ा वोट बैंक है. मुस्लिम और अन्य जातियों की एकजुटता भी इन जिलों में है.
सियासी दलों के आंकड़ों के मुताबिक मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में करीब साढ़े चार लाख, फिरोजाबाद में चार लाख, इटावा में दो लाख, फर्रुखाबाद में 1.80 लाख और कन्नौज में करीब 2.20 लाख यादव मतदाता हैं. वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव का कहना है कि यह सब देख समझकर ही अखिलेश यादव अपने सियासी करियर में पहली बार इतना लंबा वक्त यादव लैंड में दे रहे हैं. ताकि भाजपा की पैठ इस इलाके में ना हो सके. मुलायम सिंह यादव इसी तरह से भाजपा को रोकते थे, उनकी तरह ही अब अखिलेश यादव राजनीति करने में जुट गए हैं.