लोक धुनों को संरक्षित करना है जरूरी: रामबहादुर मिश्र
- लोक साहित्य परम्परा में फाग, चैता, बारहमासा पर हुई चर्चा
लखनऊ। ’लोक साहित्य में नायक-नायिका के वियोग-संयोग का जीवंत चित्रण मिलता है। फाग, चैता, चैमासा, बारहमासा की परम्परा सदियों पुरानी है। लोक साहित्य संकलन और गायन शैलियों का ध्वन्यांकन कराकर संरक्षित किया जाना आवश्यक है, कारण पारम्परिक लोक धुनें लुप्त होती जा रही हैं।’ यह बातें सोमवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल में वरिष्ठ लोक साहित्यकार डॉ रामबहादुर मिश्र ने कहीं। बारिश के कारण पुस्तक मेला के मंच पर होने वाली चौपाल ऑनलाइन सजाई गई, जिसमें लोक साहित्य परम्परा पर व्याख्यान व गीत-संगीत की प्रस्तुतियां हुईं। पद्मश्री डा. विद्याविन्दु सिंह ने आधुनिकता और परम्परा के समन्वय में भारतीयता के मूल भाव को बचाये रखने की अपील की।
कार्यक्रम का शुभारम्भ रिंकी सिंह ने देवी वन्दना से किया। साहित्यकार डा. सुरभि सिंह ने जायसी की पद्मावत में नागमती के वियोग वर्णन का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रुति परम्परा में बारहमासा की रचनाएं सैकड़ों साल से पीढी दर पीढी हस्तान्तरित होती आई है। चौपाल में चैता और चैती के अन्तर पर भी चर्चा हुई। संगीत भवन की निदेशक निवेदिता भट्टाचार्य के निर्देशन में नई पीढ़ी के बच्चों ने पारम्परिक फाग गायन व नृत्य की प्रस्तुतियां देकर सराहना बटोरी। अविका, शीर्षा, आद्रिका, अमाया, अव्युक्ता, कर्णिका, स्मिता, सार्थक, नव्या, स्नेहा, सुमन यौम्या व आशा श्रीवास्तव की संयुक्त प्रस्तुति मनोहारी रही। स्वरा त्रिपाठी ने होली तथा गौरेया संरक्षण पर स्वरचित रचनाएं सुनायीं। सरिता अग्रवाल, रीता पाण्डेय, रुपाली श्रीवास्तव, राखी अग्रवाल, अंशुमान मौर्य, शकुन्तला श्रीवास्तव, निधि निगम, संगीता खरे, ऋतुप्रिया खरे, कुमकुम मिश्रा, अलका चतुर्वेदी, ज्योति मिश्रा, सुमति मिश्रा, रत्ना शुक्ला ने चैमासा, बारहमासा, फाग और चैती की प्रस्तुतियां दीं। इस अवसर पर प्रो. सीमा सरकार, सरिता श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार शम्भू शरण वर्मा, भजन गायक गौरव गुप्ता समेत अन्य भी मौजूद रहे।