उत्तर प्रदेशलखनऊ

निराश्रित गोवंशों के लिए भूसा स्टोर करने के निर्देश

  • संरक्षित गोवंश के लिए साल के अंत तक 10.35 लाख टन भूसे की आवश्यकता
  • जिला स्तर पर 8.35 लाख टन भूसा क्रय कर संरक्षण करने का निर्देश

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ ने निराश्रित गोवंश के लिए भूसे चारे की पर्याप्त व्यवस्था करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि प्रदेश में गोवंशों के लिए चारे की कमी किसी भी प्रकार से नहीं होनी चाहिए। योगी सरकार गोवंश के संरक्षण और उनके भरण-पोषण के लिए कटिबद्ध है। सरकार निराश्रित गोवंश के भरण-पोषण के लिए भूसा बैंक के माध्यम से भूसा संकलन का काम करा रही है। वर्ष के अंत तक निराश्रित गोवंश के लिए 10.35 लाख टन भूसे की आवश्यकता होगी। प्रदेश सरकार ने इसके सापेक्ष समय से स्थानीय स्तर पर खरीद और दान के माध्यम से व्यवस्था करने का मंडलायुक्त और जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है।

प्रदेश सरकार गोवंश का संरक्षण स्थायी और अस्थायी आश्रय स्थलों पर करने की व्यवस्था कर रही है। सरकार गोवंश के भरण-पोषण और रखरखाव के लिए भी समुचित प्रबंध कर रही है। उत्तर प्रदेश में प्रदेश में कुल 11.84 लाख निराश्रित गोवंश के सापेक्ष वर्तमान में लगभग 8.5 लाख गोवंश विभिन्न स्थायी और अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों में संरक्षित किए गए हैं।

सरकार ने निर्देश दिया है कि 100 दिवस में यानी कि तीन जुलाई तक 50 हजार, छह माह में एक लाख और 31 दिसम्बर तक शत-प्रतिशत निराश्रित गोवंश को स्थायी/अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों में संरक्षित किया जाए। इन संरक्षित गोवंशों के भरण-पोषण के लिए 10.35 लाख टन भूसे की आवश्यकता होगी। इसकी व्यवस्था करना जरूरी है। ताकि वर्ष के अंत तक गोवंश का भरण-पोषण किया जा सके।

प्रदेश सरकार की अपेक्षा है कि गोवंश के भरण-पोषण के लिए ज्यादा से ज्यादा भूसा दान के रूप में प्राप्त किया जाय। प्रदेश में 16 मई तक दान के माध्यम से मात्र 13 हजार टन भूसा संग्रहीत किया गया है। वर्तमान भूसा भंडारण की प्रगति को देखते हुए जिलों से कुल दो लाख टन भूसा दान के रूप में प्राप्त करने की अपेक्षा है और शेष 8:35 लाख टन भूसा जिला स्तर पर खरीद कर उसका संरक्षण कराया जाएगा।

योगी सरकार ने भूसा संग्रह के लिए सात जून की तिथि निर्धारित की है। प्रदेश सरकार ने निर्देश दिया है कि भूसे का समुचित संरक्षण अवश्य करा लिया जाए। यदि भूसा गोदाम की उपलब्धता कम है तो पारम्परिक तरीके से भूजा, खोप, मंडिला/भोंगा आदि तैयार कर भूसा संरक्षित कराया जाए।

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