पूर्वांचल के बाहुबली पांच बार रहे कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का निधन
गोरखपुर। पूर्वांचल के सियासी समीकरणों को नए सिरे से साधने वाले हरिशंकर तिवारी 1985 से 2007 तक लगातार विधायक रहे। जेल में रह कर पहला चुनाव जीतने वाले हरिशंकर तिवारी का अरसे तक प्रदेश के जरायम जगत पर खासा प्रभाव रहा। माना जाता है कि संगिठत अपराघ व राजनीति का अपराधीकरण उन्हीं के समय से शुरू हुआ।
कभी उन्हें यूपी का डॉन, बाहुबली राजनेता और फिर उन्हें पंडित जी कहा गया। 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के निधन के समय हरिशंकर तिवारी यूपी की जेल में बंद थे और उन पर गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई चल रही थी। उस दौर में आपराधिक गिरोह ऐसे हावी थे कि गैंगवार से पहले उनकी हुंकार पर स्थानीय लोग घरों में दुबके रहते थे। हरिशंकर तिवारी ने जेल से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस को चुनौती देकर चुनाव जीता।
अपराध के कारोबार में संलिप्त रहने के बाद भी गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की छवि अलग रही। वो 1985 में चिल्लूपार की विधानसभा सीट से चुनाव जीते और विधायक बने। हरिशंकर तिवारी ने यह चुनाव जेल की सलाखों के पीछे से लड़ा था वह भी निर्दलीय। बाद में इसी सीट से वह कुल छह बार चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे और पांच बार कैबिनेट मंत्री बने।
यह आम चर्चा है कि एक समय यूपी के जरायम जगत का बेताज बादशाह बने खूंखार माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला को हरिशंकर तिवारी की सरपरस्ती हासिल थी। वैसे हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल में बाहुबलियों की नर्सरी भी कहा जाता है। उनसे पहले पूर्वांचल ने कभी गैंगवार में होने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं सुनी थी। गोरखपुर में सबसे हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही गोरखपुर यूनिवर्सिटी के जमाने से ही एक दूसरे के दुश्मन थे। 1970-80 के दशक में गोरखपुर की सड़कों पर इन दोनों के बीच जर्बदस्त गैंगवार देखा गया। इनकी दुश्मनी यूनिवर्सिटी के बाद ठेकों में भी रही। इस दुश्मनी का अंत वीरेंद्र शाही की मौत के साथ हुआ।
राजनैतिक दलों की पसंद बन गए थे हरिशंकर तिवारी
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हरिशंकर तिवारी ने जब जेल से कांग्रेस उम्मीदवार को बड़े अंतर से शिकस्त दी तब उनके रसूख को भांपते हुए कांग्रेस ने भी अगले चुनाव में उन्हें टिकट दे दिया और 2007 तक गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा। 1998 में कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया, तो बीजेपी के ही अगले मुख्यमंत्री बने रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी वह मंत्री बने। इसके बाद मायावती सरकार में मंत्री बने और 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री बने रहे। यहां तक कि जब जगदंबिका पाल सूबे के एक दिन के सीएम बने तो उनकी कैबिनेट में भी वह मंत्री थे।
वीर बहादुर सिंह पर लगाए थे आरोप
इसके बाद 1985 में हरिशंकर तिवारी ने जेल में रहकर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। एक इंटरव्यू में हरिशंकर तिवारी ने खुद यह बात कही थी कि वह राजनीति में इसलिए आए क्योंकि तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह ने उन्हें फर्जी केस में फंसाकर जेल भेज दिया था। 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी के खिलाफ गोरखपुर में 26 मामले दर्ज हुए थे। इनमें हत्या करवाना, हत्या की साजिश, अपहरण, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे कई आरोप थे। हालांकि किसी भी केस में वह दोषी साबित नहीं हुए।