महान भारतीय चित्रकार राजा रवि वर्मा के चित्रों को बनाकर कलाकारों ने किया याद

- भारतीय चित्रकार राजा रवि वर्मा के 175वीं जयंती पर डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में हुआ कार्यक्रम
लखनऊ। भारत में बड़े स्तर पर देवी देवताओं के चित्र आदि को घर-घर तक पहुंचाने का श्रेय ’राजा रवि वर्मा’को ही जाता है। हालांकि पहले भी और बाद में भी कई चित्रकारों ने पौराणिक पात्रों पर चित्र बनाये लेकिन उनको वह यश नहीं मिला जो राजा रवि वर्मा को मिला। आधुनिक भारतीय चित्रकला के जनक रहे राजा रवि वर्मा के 175 वीं जयंती पर शनिवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कलाकारों ने एक कलात्मक ढंग से मनाया । सप्रेम संस्थान की ओर से डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के वास्तुकला एवं योजना संकाय के आर्ट्स एंड ग्राफिक स्टूडियों में किया गया ।
इस कार्यक्रम में संकाय के अध्यापक और कला महाविद्यालय के सत्रह छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया । युवा कलाकारों ने राजा रवि वर्मा के इस जयंती को बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ पेपर पर अपने विभिन्न माध्यमों से अपनी अभिव्यक्ति की । सभी कलाकारों ने एक एक कृतियां सृजित की । सभी ने राजा रवि वर्मा को याद करते हुए उनके पोर्ट्रेट और शानदार चित्र बनाए ।
चित्रकार एवं कला लेखक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि राजा रवि वर्मा भारतीय कला जगत के एक महान कलाकार रहे हैं और उनकी कृतियां भी अमर और महान हैं । इस प्रकार एक कलाकार को याद करना सुखद है । इस प्रकार अपने कला जगत के महान कलाकारों को याद करने की परंपरा होनी चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ियों को इन महान कलाकारों के बारे में जानकारी मिल सके और उनकी कृतियों से जुड़ सकें ।
महान चित्रकार, राजा रवि वर्मा 7000 से भी अधिक पेंटिंग्स बनाईं, जिनमें दमयंती का हंस से बातें करना, शकुंतला को दुष्यंत की तलाश, नायर लेडी की अदाएं, शांतनु और मत्स्यगंधा की पेंटिग इत्यादि कई सारी उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। रवि वर्मा पहले भारतीय कलाकार थे जिन्होंने तैल माध्यम का उपयोग करके हिंदू देवी देवताओं को यथार्थवादी तरीके से चित्रित किया। देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती के उनके चित्रों और शास्त्रों के दृश्यों ने दशकों से भारत की दृश्य कल्पना पर अमिट छाप है। उनके चित्रों और कपड़ों,आभूषणों और भावों के बारीक विवरण के साथ समृद्ध होने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
राजा रवि वर्मा का जन्म आज से 175 साल पहले त्रावणकोर राज्य के किलिमानुर में 29 अप्रैल, 1848 को हुआ था, जिसकी राजधानी थी त्रिवेंद्रम, वर्तमान में यह केरल की राजधानी है, इनके पिता का नाम एज्हुमविल नीलकंठन भट्टातिरिपद था जो संस्कृत व आयुर्वेद के विद्वान थे । और इनकी माता उमायाम्बा थम्बुरत्ति प्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। रवि वर्मा का परिवारिक वातावरण ऐसा था जो कि संगीत, कला, साहित्य से परिपूर्ण था । रवि वर्मा को चित्रकारी में बचपन से ही रुचि थी। पांच साल की उम्र में ही उन्होंने घर की दीवारों पर दैनिक चित्र बनाना आरम्भ कर दिया था। उनके चाचा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और सन् 1862 में 14 साल की उम्र में उनको लेकर त्रावणकोर की राजधानी त्रिवेंद्रम ले आये जहां उन्होंने कला की बारीकियाँ सीखी । उस समय राजा रवि वर्मा महज 14 साल के थे, चित्रकला में रूचि के चलते जल्दी ही उन्हें इस कला में महारत हासिल हो गई। इसके बाद मदुरै, मैसूर, बड़ौदा सहित देश के कई स्थानों पर घूमकर राजा रवि वर्मा ने अपनी चित्रकला को और भी निखारा।
वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास पैलेस के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। उन्होंने पहले पारम्परिक तंजौर कला में महारत प्राप्त की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया। आज तक तैल रंगों में उनकी जैसी सजीव प्रतिकृतियाँ बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ। उनका देहान्त 2 अक्टूबर, 1906 को हुआ। वैसे महान कलाकार वर्मा के सभी कृतियां प्रसिद्ध हैं उनमे से मुख्य कृतियां जैसे दमयंती-हंसा संभाषण, लेने जा रही स्त्री, शकुन्तला, रावण द्वारा रामभक्त जटायु का वध,लक्ष्मी, सरस्वती, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण को सजाती यशोदा,अर्जुन सुभद्रा, गंगा अवतरण, शकुंतला, द्रोपदी,दुखी शकुंतला,द्रोपदी का चीरहरण इत्यादि।
कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले गिरीश पाण्डेय, सौरभ कुमार ,गौरव कुमार ,ज्योत्सना,नीरज जोशी ,विजय लक्ष्मी निसाद ,प्रकाश अग्रहरी, दिव्यान्शी कुमारी ,शिवानी विश्वकर्मा ,फातिमा अंसारी,राहुल शाक्या,शिवांश राव, प्रीति यादव, अजय यादव ,प्रीति गुप्ता , शिखा यादव ,आकांक्षा त्रिपाठी थे। सभी कलाकारोें ने जलरंग,एक्रेलिक ,चारकोल ,पेस्टल आदि से कृतियाँ उकेरी। कलाकार ,हर्ष ने सुई और धागे से वर्मा के पोर्ट्रेट बनाए वहीं प्रो निरंकार रस्तोगी ने भी रवि वर्मा के डिजिटल पोर्ट्रेट बनाए।