ओपिनियन

मोहन भागवत की पहल ऐतिहासिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत और अखिल भारतीय इमाम संघ के प्रमुख इमाम उमर इलियासी दोनों ही हार्दिक बधाई के पात्र हैं। इन दोनों सज्जनों ने जो पहल की है, वह ऐतिहासिक है। इलियासी ने दावत दी और भागवत ने उसे स्वीकार किया। मोहन भागवत मस्जिद में गए और मदरसे में भी गए। मोहनजी ने मदरसे के बच्चों से खुलकर बात की। इसके एक दिन पहले मोहन भागवत ने पांच नामी-गिरामी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी संवाद किया।

मोहनजी ने राष्ट्रीय एकात्म पैदा करने की यह जो पहल की है, इसकी शुरुआत पूर्व संघ प्रमुख सुदर्शनजी ने की थी। सुदर्शनजी कन्नड़भाषी थे। उनका लालन-पालन और शिक्षण मध्य प्रदेश में हुआ था। वे मेरे अभिन्न मित्र थे। वे लगभग 60-65 साल पहले इंदौर में मेरे घर पर आनेवाले मेरे मुसलमान और ईसाई मित्रों से खुलकर बहस किया करते थे। मेरे पिताजी के पुस्तकालय में इस्लाम पर जितने भी ग्रंथ थे, वे सब उन्होंने पढ़ रखे थे। उनकी यह पक्की धारणा थी कि भारत के हिंदू और मुसलमान सभी भारतमाता की संतान हैं। यह जरूरी है कि वे मिलकर रहें और उनके बीच सतत संवाद और संपर्क बना रहना चाहिए। जब सुदर्शनजी सर संघचालक बने तो उन्होंने 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बनवाया, जिसका सफल संचालन इंद्रेश कुमार कर रहे हैं।

सुदर्शनजी ने मेरे अनुरोध पर स्वयं लखनऊ जाकर कई मौलानाओं और समाजवादी नेताओं से सस्नेह संवाद कायम किया। उसी धारा को अब मोहन भागवत ने काफी आगे बढ़ा दिया है। मोहनजी ने अपने संवाद में साफ-साफ कहा कि जिहाद के नाम पर हिंसा और बैर-भाव फैलाना तथा हिंदुओं को काफिर कहना कहां तक ठीक है? इसी प्रकार उन्होंने अपने कथन को दोहराया कि हिंदू और मुसलमानों का डीएनए तो एक ही है। वे सब भारतमाता की संतान हैं।

मोहनजी ने मदरसे के बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उनकी शिक्षा में आधुनिक विषय पढ़ाने के सुझाव भी दिए। मोहन भागवत के आगमन और संवाद से सम्मोहित हुए इमाम इलियासी ने उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ तक कह दिया। फूलकर कुप्पा होने की बजाय विनम्रता के धनी मोहन भागवत ने कहा कि राष्ट्रपिता तो एक ही हैं। हम सब राष्ट्र की संतान हैं। इलियासी अक्सर मुझसे कहा करते हैं कि मुसलमान तो मैं पक्का हूं लेकिन मैं राजपूत भी हूं, यह मत भूलिए। हिंदुओं और मुसलमानों में जो लोग कट्टरपंथी हैं, उन्हें भागवत और इलियासी, दोनों से काफी नाराजी हो रही होगी लेकिन वे जरा सोचें कि आज कट्टरवादियों ने कटुता और संकीर्णता का जैसा माहौल बना रखा है, उसमें क्या यह भेंट आशा की किरण की तरह नहीं चमक रही है?

पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उनके नेताओं से जब भी मेरी बात होती है, वे संघ पर प्रहार करने से कभी नहीं चूकते लेकिन क्या अब वे यह महसूस नहीं करेंगे कि यह जो नई विचारधारा भारत में चल पड़ी है, यह भारत के हिंदुओं और मुसलमानों को ही एक-मेक नहीं कर देगी बल्कि यह प्राचीन भारत यानी आर्यावर्त यानी दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों को भी एक सूत्र में बांधने का काम करेगी। यही असली ‘भारत जोड़ो’ है।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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