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बिहार के बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई पर सियासी हलकों में बवाल

पटना। बिहार के सियासी हलकों में आनंद मोहन सिंह की रिहाई को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। वे 27 अप्रैल को रिहा हो सकते हैं। 1994 में तत्कालीन जिलाधिकारी गोपालगंज के जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन दोषी ठहराए गए थे और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी। लेकिन अब बिहार की नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में संशोधन करते हुए आनंद मोहन समेत 27 लोगों की रिहाई के आदेश दिए हैं।

बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह रिहाई को सही ठहरा रहे हैं, जबकि सुशील मोदी नीतीश सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। इसी बीच दिवंगत जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने मामले में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की मांग की है। उमा देवी का कहना है कि सरकार राजपूत वोटों के लिए यह सब कर रही है। उन्होंने नीतीश कुमार के सुशासन पर सवाल उठाते हुए कहा- एक ईमानदार अफसर की हत्या करने वाले को छोड़ा जा रहा है, इससे हम समझते हैं कि न्याय व्यवस्था क्या है?

रिहाई पर सियासी हलकों में बवाल

आनंद मोहन दलित आईएएस जी कृष्णैया हत्याकांड के मुख्य दोषी थे। उन्हें इस मामले में फांसी की सजा भी सुनाई गई थी, लेकिन बाद में ऊपरी अदालत ने आनंद मोहन की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। आनंद मोहन के जेल में रहते हुए गवाहों और सबूत को प्रभावित करने का भी आरोप लगा, जिस वजह से कई बार उनकी जेल भी बदली गई।

बिहार सरकार ने जेल नियमावली-2012 में संशोधन कर दिया है। इस नियमावली में पांच श्रेणी के कैदियों को उम्रकैद की सजा में 20 वर्ष से पहले कोई रियायत नहीं दिए जाने का प्रावधान था। इसमें लोकसेवकों की हत्या भी शामिल था। बिहार सरकार ने नियम में संशोधन कर लोकसेवकों की हत्या को इस श्रेणी से हटा दिया।इसका फायदा आनंद मोहन को मिला।

बाहुबली आनंद मोहन का राजनीतिक सफर

1975 में जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति का सबसे ज्यादा असर बिहार में ही हुआ था। बिहार के गांव-गांव से युवा जेल भरो आंदोलन कर रहे थे। इसी आंदोलन से प्रेरित होकर आनंद मोहन भी सहरसा जेल में बंद हो गए। आपातकाल के दौरान आनंद मोहन 2 साल तक जेल में रहे। आपातकाल हटने के बाद आनंद छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए। 1977 के अंत में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बिहार आए थे। आनंद ने उन्हें काला झंडा दिखा दिया। जनता पार्टी से इसके बाद आनंद निकाले गए।

1990 में आनंद सहरसा के महिषी सीट से पहली बार विधायक चुने गए। 1994 में उन्होंने अपनी पत्नी लवली आनंद को मैदान में उतार दिया। लवली भी लोकसभा पहुंचने में कामयाब रही। 1994 में डीएम हत्या के बाद आनंद मोहन जेल चले गए। इसके बाद 1996, 1998 का लोकसभा चुनाव शिवहर सीट से जेल से ही जीतने में सफल रहे। 1999 के चुनाव में राजद के अनावरुल हक ने आनंद मोहन को हरा दिया। आनंद मोहन 2004 का चुनाव भी हार गए। 2009 में पटना हाईकोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा दिया।

1996 के बाद आनंद मोहन की पत्नी भी लगातार चुनाव हारती रहीं। 2020 में आनंद मोहन परिवार को जीत की संजीवनी मिली। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद राजद टिकट पर शिवहर सीट से जीतने में कामयाब रहे। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में कहा कि आनंद मोहन की रिहाई से सवर्ण वोटर खासकर राजपूत और भूमिहार एक मंच पर आ सकते हैं, जिससे जदयू-राजद गठबंधन को आने वाले चुनाव में फायदा हो सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पाण्डेय ने कहा कि बिहार में सवर्ण मतदाताओं की आबादी करीब 18 फीसदी है। इनमें भूमिहार 6, राजपूत और ब्राह्मण 5.5 फीसदी शामिल हैं। आनंद मोहन के जेल से निकलने के बाद इन मतदाताओं का रुझान वर्तमान महा गठबंधन सरकार की ओर जा सकता है।हालांकि वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी ने कहा कि राजपूत सहित सभी सर्वाण मतदाता फिलहाल भाजपा के साथ ही रहेंगे। जदयू अपनी ओर से जरुर इस कवायद में है कि आनंद मोहन के सहारे वह सर्वणों के वोट बैंक में सेंघ लगा सके।

वरिष्ठ पत्रकार लव मिश्र ने कहा कि उत्तर बिहार के बेतिया, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मोतिहारी और हाजीपुर सीट पर सवर्ण वोटर्स हार-जीत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। पिछड़ा, मुसलमान और सवर्ण वोटर अगर यहां मिल गए तो सारे समीकरण ध्वस्त हो सकते हैं।आनंद मोहन का दबदबा भी इन इलाकों में रहा है। आनंद खुद कोसी क्षेत्र से आते हैं, इसलिए कोसी क्षेत्र में भी महा गठबंधन आनंद के सहारे फायदा उठाने की कोशिश करेगी।

चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार में 18 से लेकर 39 साल तक के युवा मतदाताओं की संख्या करीब 3 करोड़ के आसपास है। बिहार में कुल मतदाताओं का यह 30 फीसदी है। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने कहा कि आनंद मोहन की रिहाई से सर्वण साथ महा गठबंधन के साथ आए या न आए दलित वोट खिसकने का डर 100 फिसदी है। जी कृष्णैया एक दलित आईएएस अधिकारी थे। ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई पर बीएसपी समेत कई दलित संगठनों ने विरोध किया है।

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