अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद दुनिया के लिए यहां आतंकवादी गुट पनपने को लेकर एक बड़ी चिंता गहराई हुई है. इस बीच सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति के अध्यक्ष राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने तालिबान, अल कायदा और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के बीच संबंधों पर चिंता व्यक्त की है. टीएस तिरुमूर्ति ने कहा है कि सुरक्षा परिषद की ओर से प्रतिबंधित तालिबान, अल-कायदा और आतंकवादी संस्थाओं के बीच संबंध जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद चिंता का एक और स्रोत हैं और इसीलिए गंभीर चिंता बनी हुई है कि अफगानिस्तान अलकायदा और क्षेत्र के कई आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन सकता है.
उन्होंने कहा, ‘अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने से क्षेत्र के बाहर, विशेष रूप से अफ्रीका के कुछ हिस्सों में एक जटिल सुरक्षा खतरा पैदा हो गया है, जहां आतंकवादी समूह तालिबान के उदाहरण का इस्तेमाल करने का प्रयास कर सकते हैं. हम यह भी जानते हैं कि सूचना का दुरुपयोग और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी आतंकवादी उद्देश्यों के लिए बढ़ रहा हैं, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, “डीप फेक” और ब्लॉकचेन जैसी नई टेक्नोलॉडी शामिल हैं.
अभी हाल ही में भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा था कि कुछ आतंकवादी संगठनों ने मानवीय कार्यों के लिए दी जाने वाली छूट का पूरा लाभ उठाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध व्यवस्था का ‘‘मजाक’’ बनाया है और पड़ोस में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों ने प्रतिबंधों से स्वयं को बचाने के लिए मानवीय संगठनों के रूप में खुद को पेश किया है. टीएस तिरुमूर्ति ने कहा था, ‘यह महत्वपूर्ण है कि प्रतिबंध वैध मानवीय आवश्यकताओं को बाधित नहीं करें. बहरहाल, यह आवश्यक है कि मानवीय आधार पर छूट मुहैया कराते समय खासकर आतंकवादियों को पनाहगाह मुहैया कराने वाले स्थानों के संदर्भ में पूरी सावधानी बरती जाए.’
प्रतिबंध व्यवस्थाओं की लगातार समीक्षा किए जाने की आवश्यकता- तिरुमूर्ति
तिरुमूर्ति ने कहा था कि इन प्रतिबंध व्यवस्थाओं की लगातार समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है, ताकि वे बदलते हालात के अनुसार ढल सकें और कारगर साबित हो सकें. इन प्रतिबंधों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए प्रतिबंध समितियों के अध्यक्षों को अधिक अग्रसक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है.
भारत वर्तमान में दो साल के कार्यकाल के लिए सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है. तिरुमूर्ति ‘1988 तालिबान प्रतिबंध समिति’, ‘लीबिया प्रतिबंध समिति’ और ‘आतंकवाद विरोधी समिति’ के अध्यक्ष हैं. तिरुमूर्ति ने साथ ही कहा था कि सभी विकल्पों का इस्तेमाल कर लेने के बाद अंत में ही प्रतिबंध लागू किए जाने चाहिए. इन प्रतिबंधों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों के अनुसार लागू किया जाना चाहिए और उनसे अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.