नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक को परम्पराओं और प्रौद्योगिकी की धरती बताते हुए शनिवार को कहा कि ‘कोई भी युगपरिवर्तक मिशन अयोध्या से शुरू होता है तो उसे ताकत कर्नाटक से मिलती है।” मोदी राजधानी में कर्नाटक की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं की विविधता को परिलक्षित करने वाले ‘बारिसू कन्नडा दिम दिमावा’ संस्कृति महोत्सव को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से कर्नाटक ने भारत में हनुमान की भूमिका निभाई है। उन्होंने पौराणिक राम वन गमन और किष्किंधा राज्य में श्रीरामचंद्र और उनके अनुज श्री लक्ष्मण के साथ हनुमानजी के मिलन और उसके बाद सीताजी की खोज तथा रावण के पराभव की कथा का उद्धरण करते हुए कहा कि कोई भी युग परिवर्तन मिशन अयोध्या से शुरू होकर रामेश्वरम जाता है तो उसे ताकत सिर्फ कर्नाटक में मिलती है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली कर्नाटक संघ के 75वें वर्ष का यह उत्सव ऐसे समय हो रहा जब देश भी आज़ादी के 75वें वर्ष का अमृत महोत्सव मना रहा है। उन्होंने कहा , “ भारत की पहचान , परम्पराएं या प्रेरणाएं हों, कर्नाटक के बिना हम भारत को परिभाषित नहीं कर सकते। आज जब भारत जी-20 जैसे बड़े वैश्विक समूह की अध्यक्षता कर रहा है, तो लोकतन्त्र की जननी- के रूप में हमारे आदर्श हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।”
मोदी ने कहा , ‘“कर्नाटक परंपराओं और प्रौद्योगिकी की भूमि है। इसमें ऐतिहासिक संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी है। ‘अनुभव मंतपा’ के माध्यम से भगवान बसवेश्वर की लोकतांत्रिक शिक्षाएं भारत के लिए प्रकाश की किरण की तरह हैं।’ उन्होंने कहा कि आज देश विकास और विरासत को, प्रगति और परम्पराओं को एक साथ लेकर आगे बढ़ रहा है।
विकास की नयी रफ्तार से कर्नाटक की तस्वीर तेजी से बदल रही है। वर्ष 2009-2014 की अवधि में कर्नाटक को पांच साल में रेलवे परियोजनाओं में चार हजार करोड़ रुपये मिले, जबकि इस साल के बजट में केवल कर्नाटक रेल इन्फ्रा के लिए 07 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।’
मोदी ने कन्नड़ संस्कृति को दर्शाने वाली फिल्में गैर-कन्नडिगा दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुईं और कर्नाटक के बारे में अधिक जानने की इच्छा पैदा की। इस इच्छा का लाभ उठाने की जरूरत है । उन्होंने मध्यकाल का भी उल्लेख किया जब आक्रमणकारी देश को तबाह कर रहे थे और सोमनाथ जैसे शिवलिंगों को नष्ट कर रहे थे, यह देवरा दासिमय्या, मदारा चेन्नईयाह, दोहरा कक्कैया और भगवान बसवेश्वर जैसे संत थे जिन्होंने लोगों को अपनी आस्था से जोड़ा।
विकास की नयी रफ्तार से कर्नाटक की तस्वीर तेजी से बदल रही है। वर्ष 2009-2014 की अवधि में कर्नाटक को पांच साल में रेलवे परियोजनाओं में चार हजार करोड़ रुपये मिले, जबकि इस साल के बजट में केवल कर्नाटक रेल इन्फ्रा के लिए 07 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।’
मोदी ने कन्नड़ संस्कृति को दर्शाने वाली फिल्में गैर-कन्नडिगा दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुईं और कर्नाटक के बारे में अधिक जानने की इच्छा पैदा की। इस इच्छा का लाभ उठाने की जरूरत है । उन्होंने मध्यकाल का भी उल्लेख किया जब आक्रमणकारी देश को तबाह कर रहे थे और सोमनाथ जैसे शिवलिंगों को नष्ट कर रहे थे, यह देवरा दासिमय्या, मदारा चेन्नईयाह, दोहरा कक्कैया और भगवान बसवेश्वर जैसे संत थे जिन्होंने लोगों को अपनी आस्था से जोड़ा।
इसी तरह रानी अब्बक्का, ओनके ओबवावा, रानी चेन्नम्मा, क्रांतिवीर संगोली रायन्ना जैसे योद्धाओं ने विदेशी शक्तियों का सामना किया। स्वतंत्रता के बाद, प्रधान मंत्री ने कहा, कर्नाटक के गणमान्य व्यक्तियों ने भारत को प्रेरित करना जारी रखा। प्रधानमंत्री ने एक भारत श्रेष्ठ भारत के मंत्र को जीने के लिए कर्नाटक के लोगों की सराहना की। उन्होंने कवि कुवेम्पु के ‘नाद गीते’ के बारे में बात की और श्रद्धेय गीत में व्यक्त राष्ट्रीय भावनाओं की खूबसूरती से प्रशंसा की।
उन्होंने कहा, “इस गीत में, भारत की सभ्यता को दर्शाया गया है और कर्नाटक की भूमिका और महत्व का वर्णन किया गया है। जब हम इस गीत की भावना को समझते हैं, तो हमें एक भारत श्रेष्ठ भारत का सार भी समझ में आता है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि मौजूदा सरकार भद्रा परियोजना की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा कर रही है और यह सब विकास तेजी से कर्नाटक का चेहरा बदल रहा है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली कर्नाटक संघ के 75 वर्षों ने विकास, उपलब्धि और ज्ञान के कई महत्वपूर्ण क्षणों को आगे बढ़ाया है। अगले 25 वर्षों के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने उन महत्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डाला जो अमृत काल और दिल्ली कर्नाटक संघ के अगले 25 वर्षों में उठाए जा सकते हैं।
उन्होंने रेखांकित किया कि केंद्रीय ध्यान ज्ञान और कला पर रखा जाना चाहिए और कन्नड़ भाषा और इसके समृद्ध साहित्य की सुंदरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि कन्नड़ भाषा के पाठकों की संख्या बहुत अधिक है और प्रकाशकों को इसके प्रकाशन के कुछ हफ्तों के भीतर एक अच्छी किताब का दोबारा मुद्रित करना पड़ता है।