आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थी सुचेता कृपलानी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की चौथी और आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री 1963 में सुचेता कृपलानी बनीं थी। उन्होंने 1963 से लेकर 1967 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद राजनीति में वह ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहीं। 1971 में उन्होंने सियासत से संन्यास ले लिया। उन्होंने अपनी वसीयत में अपना सारा धन लोक कल्याण समिति को दे दी थी। एक दिसंबर, 1974 को 66 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया।
सुचेता कृपलानी का मुख्यमंत्री बनने की घटना
यह घटना तब की है जब कांग्रेस के भीतर भी बगावत और विद्रोह के सुर उभर रहे थे। कांग्रेस के लोग ही कांग्रेस को चुनौती देने लगे थे। यूपी में नेहरू के खिलाफ बगावत कर रहे लोगों में सबसे बड़ा नाम था चंद्रभानु गुप्ता का। राजनीतिक स्थितियां तब कुछ ऐसी बनीं कि नेहरू ने जबर्दस्ती चंद्रभानु गुप्ता का इस्तीफा ले लिया।
इस इस्तीफे के बाद कांग्रेस में साफतौर पर दो धड़े बन गए थे। एक धड़ा नेहरू के साथ था, जिसका नेतृत्व कमलापति त्रिपाठी कर रहे थे और दूसरा नेहरू के खिलाफ था जिसकी कमान चंद्रभानु गुप्ता के हाथों में थी। गुप्ता का जलवा और उत्तर प्रदेश के अवाम में उनकी पैठ बहुत गहरी थी।
चंद्रभानु गुप्ता के इस्तीफे के बाद तलाश थी प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की, जो किसी भी हाल में कमलापति त्रिपाठी यानी नेहरू के गुट से नहीं हो सकता था। गुप्ता बहुत तत्परता से किसी नए चेहरे की तलाश में थे। उसी समय जेबी कृपलानी बीमार पड़े और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। चंद्रभानु उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और अपनी परेशानी उनसे साझा की।
कृपलानी ने अपने बगल में बैठी पत्नी सुचेता की ओर इशारा करके कहा कि इसे बनाइए प्रदेश का नया मुख्यमंत्री। चंद्रभानु गुप्ता को जवाब मिल गया था। हालांकि केंद्र की कांग्रेस सरकार और नेहरू दोनों ही इस फैसले से खुश नहीं थे। लेकिन प्रदेश को मुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा मिल गया। इस तरह 1963 में सुचेता कृपलानी आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री व उत्तर प्रदेश की चौथी मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 1963 से लेकर 1967 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला।
जेबी कृपलानी और नेहरू के बीच राजनीतिक मतभेद
आजादी के बाद पहली सरकार बनी और उस सरकार में प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू, लेकिन जेबी कृपलानी और नेहरू के बीच कुछ राजनीतिक मतभेद होने लगे थे। इन मतभेदों के बढ़ने पर कृपालानी ने कांग्रेस छोड़ दिया और अपनी खुद की किसान मजदूर प्रजा नाम की पार्टी बना ली। सुचेता भी अपने पति के साथ कांग्रेस छोड़ नई पार्टी में शामिल हो गई।
1952 में किसान मजदूर पार्टी की ओर से नई दिल्ली से चुनाव भी लड़ाए लेकिन वहां भी उनके मतभेद होने लगे। जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस वापसी का फैसला किया। 1957 में नई दिल्ली सीट से दोबारा कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव में खड़ी हुईं और जीतीं। 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रही। 1962 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और कानपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं। उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग में कैबिनेट मंत्री का पद मिला।