राष्ट्रीय सियासत में कद बढ़ाने की कोशिश में जुटे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव केंद्रीय राजनीति में अपनी छवि बनाने में जुटे हैं। वह न सिर्फ विभिन्न राज्यों में पार्टी उम्मीदवार उतार रहे हैं, बल्कि गैर भाजपाई पार्टियों के आयोजन में भी हिस्सा ले रहे हैं। तेलंगाना के बाद उनकी तमिलनाडु यात्रा को इसी रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। यह लोकसभा चुनाव के बाद कितनी कारगर होगी यह तो वक्त बताएगा, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर उनका कद बढ़ाने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में अखिलेश यादव को दूसरी बार अध्यक्ष चुना गया। सम्मेलन में उन्होंने पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने का संकल्प लिया। वह गुजरात चुनाव में उतरे और वहां एक विधायक से खाता खोलने में कामयाब रहे। अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में कमेटियों को सक्रिय किया जा रहा है। उन्होंने मध्य प्रदेश की कमान अपने भाई पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को दे रखी है। इस बीच वह दिल्ली में निरंतर विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिल रहे हैं। जनवरी में वह तेलंगाना पहुंचे थे। वहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन और सीपीआई के डी राजा के साथ एकजुटता का संदेश दिया।
बुधवार को वह चेन्नई पहुंचे। जहां तमिलनाडु के साथ केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्य के पार्टी नेताओं के साथ बैठक किया। सियासी हालात पर चर्चा के दौरान आगामी चुनाव के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया। एक तरह से यह दक्षिण के राज्यों में सियासी पैठ बढ़ाने की कोशिश है। संभव है कि वह पार्टी का नेतृत्व कर रहे कुछ नेताओं को वहां की स्थानीय पार्टियों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतार सकते हैं। दूसरी तरफ उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के जन्मदिन समारोह को संबोधित किया। यहां सामाजिक न्याय की वकालत की। कहा कि लोकतंत्र और संविधान दोनों को चुनौतियां मिल रही है। संविधान में वर्णित पंथ निरपेक्षता की अवहेलना हो रही है।
2024 में देश की जनता इसका जवाब देगी। इस समारोह में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दक्षिण के तमाम नेताओं के साथ मंच साधा किया। उनकी दक्षिण के नेताओं के साथ चल रही गलबहियां को वरिष्ठ पत्रकार अरुण त्रिपाठी भविष्य की सियासी रणनीति के तौर पर देखते हैं। वह कहते हैं कि अखिलेश यादव सिर्फ आगामी लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति नहीं तैयार कर रहे हैं बल्कि वह चुनाव के बाद की सियासत साध रहे हैं। वह अपनी छवि को उभारने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल होने के बाद यहां से गैर भाजपाई के रूप में बड़ी पार्टी सपा ही नजर आ रही है। वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र भी इसी से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि अभी राष्ट्रीय राजनीति में अखिलेश के पास लंबा वक्त है। उसी दृष्टिकोण से वह तैयारी में जुटे हैं। दक्षिण के नेताओं का साथ लेकर वह दोहरी कार्ययोजना को अंजाम देने की फिराक में हैं। एक तरफ वह अपनी पार्टी को राष्टीय बनाने की योजना में हैं तो दूसरी तरफ नई पीढ़ी के नेताओं में अपनी स्वीकारता बढ़ा रहे हैं।