संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों में स्मार्ट कक्षाओं की व्यवस्था होगी : दीपक कुमार

- प्राचीन ज्ञान, परम्परा का संरक्षण एवं संवर्द्धन होना चाहिए
- छात्रपरक व शास्त्रपरक पाठ्यक्रम रखने की आवश्यकता
लखनऊ। उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद लखनऊ की ओर से नवीन शिक्षा नीति 2020 के सापेक्ष्य पाठ्यक्रम का पुनरीक्षण करने की दृष्टि से केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गोमती नगर, लखनऊ में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए अपर मुख्य सचिव, बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा दीपक कुमार ने कहा कि विद्यालयों में स्मार्ट कक्षाओं की व्यवस्था उपयोगी होगी, इन कक्षाओं में आडियो-विजुअल सुविधाएं शासन की ओर से उपलब्ध करायी जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों के कक्षा-06 में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए तीन माह का ब्रिज कोर्स रेडीनेस प्रोग्राम के रूप में तय किये जाने की आवश्यकता हैं।
विशेष सचिव, माध्यमिक शिक्षा जीएस नवीन कुमार ने कहा कि यदि भारत वर्ष की क्लासिकल भाषाओं का शिक्षण भी किया जाए तो अन्य प्रदेशों में जाकर रोजगार करने वाले छात्रों को सुविधा होगी।
कार्यशाला में निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गोमती नगर, लखनऊ प्रो० सर्वनारायण झा ने कहा कि प्राचीन ज्ञान, परम्परा का संरक्षण एवं संवर्द्धन होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पाठ्यक्रम पूर्ण करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति भी मिले।
निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ प्रो. सर्वनारायण झा ने सुझाव दिया कि कार्यरत अध्यापकों के भाषायी कौशल को विकसित करने के लिए पुन: बौद्धिक प्रशिक्षण की आवश्यकता हैं जिसमें उनका प्रशिक्षण लिखित एवं मौखिक दोनों प्रकार से हो तथा उर्त्तीण होना अनिवार्य रखा जाए ताकि वह गुणवत्ता पूर्ण पठन-पाठन कर सकें।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद, लखनऊ के सचिव राधाकृष्ण तिवारी ने बताया कि कक्षा 06 में प्रवेश लेने वाले छात्रों का भाषाई आधार संस्कृत के क्षेत्र में कमजोर होने के कारण उन्हें कठिनाई होती हैं। सम्प्रति बोर्ड द्वारा प्रत्येक विषय के लिए पुस्तकों के रूप में विषय सामग्री की उपलब्धता पर्याप्त नही हैं। इसलिए कक्षा के अनुरूप निर्धारित अंश मोटे-मोटे से लेकर पुस्तक का रूप दिये जाने से छात्रों को पढ़ने, समझने व स्वःमूल्यांकन में सुविधा होगी।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. राम किशोर त्रिपाठी ने कहा कि शास्त्र शिक्षण को बहुत आधुनिक बनाने की आवश्यकता नहीं हैं अन्यथा सामान्यीकरण से मूल तत्व समाप्त होने की सम्भावना बढ़ जाएगी।