उत्तर प्रदेशलखनऊ

उत्तर प्रदेश राज्य संग्रहालय में डॉ0 वासुदेव शरण अग्रवाल पर व्याख्यान सम्पन

प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल जयन्ती के उपलक्ष्य में राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा आयोजित बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल का भारतीय कला और संस्कृति को योगदान विषयक व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रो० मारूति नन्दन प्रसाद तिवारी द्वारा पॉवर प्वाइन्ट के माध्यम से रूचिकर एवं सारगर्भित व्याख्यान दिया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ० भीनाक्षी खेगका सहायक निदेशक द्वारा डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल जी एवं आज के अध्यक्ष-प्रो० के० के० थपल्याल, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, मुख्य अतिथि- विजय कुमार महानिदेशक, उत्तर प्रदेश एवं मुख्य वक्ता प्रो० मारूति नन्दन प्रसाद तिवारी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया।

मुख्य वक्ता प्रो० तिवारी द्वारा बताया गया कि प्रो० वासुदेव शरण अग्रवाल नाम है एक कर्मयोगी, दृढ निश्चयी और भारतीय संस्कृति एवं कला के अध्ययन एवं शोध के प्रति समर्पित अप्रितम व्यक्तित्व का। उन्होंने कहा कि मेरी दृष्टि में प्रो० वासुदेव शरण अग्रवाल ने भी भारतीय संस्कृति एवं कला के प्रति समर्पित भाव से अध्ययन एवं लेखन के माध्यम से हम सबको जो दिया है वह भारतीय संस्कृति की ही सेवा है । प्रो० तिवारी द्वारा यह भी कहा गया कि प्रो० वासुदेव शरण अग्रवाल जी पर विभाग में 2004 में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके शिष्य डॉ0 श्याम नारायण पाण्डेय जी ने अग्रवाल जी की डायरी के कुछ पन्नों को उद्धृत किया था, जो उनके व्यक्तित्व को समझने की दृष्टि से नितान्त महत्वपूर्ण है। डायरी लिखना महापुरूषों के दैनिक कार्यक्रम का हिस्सा रहा है। इसके माध्यम से वे आत्म निरीक्षण एवं आत्म संवाद दोनों ही करते थे और साथ ही फलश्रुति के रूप में आत्म निर्देश भी लेते थे।

डायरी के पन्नों से भारतीय समाज एवं संस्कृति के प्रति डॉ0 अग्रवाल के दायित्व बोध और भविष्य की कार्य योजना उजागर होती है। उनकी 40 पुस्तकें एवं 700 लेख भारतीय कला एवं संस्कृति के विविध पक्षों पर प्रकाशित है, जिनमें मेघदूतः एक अध्ययन, हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पाणिनी युग भारत, पद्मावत, कादंबरीः एक सांस्कृतिक अध्ययन एवं भारत सावित्री आदि है। मुख्य वक्ता ने यह बताया कि पद्म भूषण रायकृष्ण दास ने भारतीय कला और संस्कृति को डॉ० अग्रवाल के अभूतपूर्व रचनात्मक योगदान के आधार पर उनकी तुलना कलिकाल सर्वज्ञ 12वीं शती० ई० के जैनाचार्य हेमचन्द्र से की है ।

मुख्य अतिथि श्री विजय कुमार, महानिदेशक, उत्तर प्रदेश ने बताया कि मूर्तियों एवं साहित्य में उल्लिखित साक्ष्यों में समन्वय स्थापित किया जाना डॉ० अग्रवाल जी का भारतीय संस्कृति एवं कला में अप्रतिम योगदान है । अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रो० थपल्याल ने डॉ० अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को बहुत ही सरल शब्दों में व्याख्यायित किया ।

कार्यक्रम के अन्त में संग्रहालय के निदेशक डॉ० सृष्टि धवन ने अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता एवं गणमान्य विद्वतजनों को धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर प्रो० एस०एन० कपूर, आई०पी० पाण्डेय, डॉ० श्यामानन्द उपाध्याय, उक्त कार्यक्रम को सफल बनाये जाने में डॉ० विनय कुमार सिंह, डॉ० मीनाक्षी खेमका, राधे लाल, डॉ० अनिता चौरसिया, धनन्जय कुमार राय, महावरी सिंह चौहान, प्रमोद कुमार, शशि कला राय, डॉ० मनोजनी देवी, गौरव कुमार, शारदा प्रसाद, बृजेश यादव, गायत्री गुप्ता, संतोष कुमार आदि समस्त कार्मिकों द्वारा सहयोग प्रदान किया गया।

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