उत्तर प्रदेशलखनऊ

प्रसव पूर्व जाँच में आ रही चुनौतियों को दूर करना ज़रूरी

  • सुरक्षित मातृत्व देखभाल में स्वास्थ्यकर्मी की भूमिका अहम

लखनऊ। सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल की नींव यानि गर्भवती का पंजीकरण और संस्थागत प्रसव कराने में काफी हद तक सफ़लता मिली है, लेकिन गर्भवतियों की चार प्रसव पूर्व जाँच होना अभी भी चुनौती बना हुआ है|

प्रसव पूर्व जाँच को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयास भी कर रही हैं| प्रसव पूर्व जाँच को सुनिश्चित करने के लिए हर माह की 9 तारीख को मनाये जाने वाला प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस अब हर माह में चार बार 1, 9, 16, और 24 को मनाया जा रहा हैं| इस दिवस को माह में चार बार आयोजित करने के सम्बन्ध में प्रमुख सचिव द्वारा जारी पत्र में बताया गया है कि प्रदेश में संभावित गर्भवती की संख्या 67 लाख है, लेकिन पीएमएसएमए दिवस पर मार्च 2023 तक कुल 12.55 लाख दूसरे और तीसरे त्रैमास की गर्भवती ही जाँच के लिए आयी|

क्वीन मैरी अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की हेड डॉ. एस पी जैसवार बताती हैं कि गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में समस्या की पहचान और प्रबंधन के लिए और गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताओं को रोकने के लिए प्रसवपूर्व जांच आवश्यक है जो मातृ और भ्रूण मृत्यु को कम करने में मदद करेगी।

प्रसव पूर्व जांच न करवाने के कारणों के बारे में राजधानी के मवैया क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता सुमन बताती हैं अक्सर नज़र लग जाने की वजह से गर्भावस्था कुछ महीने तक छुपायी जाती है| इसको देखते हुए गर्भवती महिलाएं दूसरी तीमाही के अंत में ही आती है| वहीँ शहरी क्षेत्र में सरकारी तंत्र में आने वाले ज्यादातर लोग बाहर के निवासी होते हैं, ऐसे में गर्भावस्था के समय महिला अक्सर तीसरी तीमाही के बाद प्रसव के लिए अपने घर चली जाती है|

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफ़एचएस) -5 के अनुसार प्रसवपूर्व जाँच पर स्कूली शिक्षा का भी प्रभाव पड़ता है, जहाँ स्कूल न गयी 35 प्रतिशत महिलाओं ने सभी प्रसव पूर्व जाँच करायी, वहीँ 12 या उससे ज्यादा वर्ष की शिक्षा प्राप्त 50 प्रतिशत महिलाएं सभी प्रसव पूर्व जाँच के लिए आयी|

इस सम्बन्ध में चुनौतियाँ कहाँ पर है, इस विषय पर जमीनी स्तर पर कार्य कर रहें कर्मियों के विभिन्न मत और इन चुनौतियों से निपटने के लिए अलग सुझाव भी हैं|

एनएफ़एचएस सर्वे के अनुसार प्रदेश में सबसे अधिक 70 प्रतिशत चारों प्रसव पूर्व जाँच कराने वाले जनपद कानपुर नगर के मातृत्व स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर बताते हैं कानपुर में ग्रामीण से शहरी क्षेत्र तक सभी जगह स्टाफ़ है जिसके चलते मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर जो भी लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं, उसके परिणाम अच्छे दे पाते हैं| “हालाँकि शहरी क्षेत्र में 50 शहरी उपकेन्द्र है, लेकिन यदि मलिन बस्तियों के लिए और आशा कार्यकर्ता मिल जाये तो स्थिति यह 70 प्रतिशत जो नंबर है वह और बढ़ सकता है|’’

सर्वे के अनुसार सबसे अंतिम पायदान (20 प्रतिशत) पर रहने वाले जनपद उन्नाव के अचलगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी शैलेन्द्र कुमार बताते हैं यदि सभी स्वास्थ्य केंद्र सुचारू रूप से संचालित कर दिए जाये तो परिणाम बेहतर होंगे| ”अब सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) की नियुक्ति हो रहीं है, उम्मीद है कि सीएचओ और अन्य स्टाफ़ की मदद से प्रसव पूर्व जाँच सुनिश्चित कराने में सफ़लता मिलेंगी|’’

झाँसी जनपद की स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी डॉ. विजयश्री शुक्ला के अनुसार आशा कार्यकर्ता और एएनएम एक गर्भवती के सबसे पहले संपर्क सूत्र होते हैं| ऐसे में आशा और एएनएम को आपसी समन्वय के साथ कार्य करने की जरुरत है, इसी के साथ इन दोनों के प्रशिक्षण सत्र भी एक साथ होने चाहिए जिससे दोनों के कार्य के बारें में दोनों को अच्छे से पता हो| वहीँ लाभार्थी जिस तरह बच्चों के टीकाकरण के समय कार्ड लेकर केंद्र पर आती है, उसी तरह जब वह अपनी जाँच कराने आये तो एमसीपी कार्ड जरुर लेकर आये| इसके अलावा स्वास्थ्य कर्मी द्वारा पूरा कार्ड अच्छे से भरा जाये, तब ही इसकी मॉनिटरिंग अच्छे से हो सकती है और यह नम्बर फिर अच्छे स्तर पर दिखायी देंगे, वह बताती हैं|

वहीँ झाँसी जनपद के जिला कार्यक्रम प्रबंधक ऋषिराज का मानना है कि तकनीकी रूप से कुशल स्टाफ़ की कमी की वजह से रिपोर्टिंग में गड़बड़ होती है| “आशा कार्यकर्ता और एएनएम के ऊपर काम का बहुत बोझ है| इन्हीं दोनों के ऊपर हर एक कार्यक्रम की ज़िम्मेदारी है क्योंकि यही लाभार्थी के सीधे संपर्क में रहती हैं| ऐसे में सभी जगह तकनीकी रूप से कुशल कर्मी तैनाती से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं|’’

एनएफ़एचएस-5 के आंकड़े दर्शा रहे हैं उत्तर प्रदेश में कुल 95.7 प्रतिशत गर्भवती को रजिस्टर करके उनको मातृ एवं शिशु सुरक्षा कार्ड (एमसीपी) जारी किया गया, और 83.4 प्रतिशत गर्भवतियों के संस्थागत प्रसव कराये गए| वहीँ जब प्रसव पूर्व जाँच की बात आती है तो केवल 62.5 प्रतिशत गर्भवती ने ही प्रथम तीमाही में प्रसव पूर्व जाँच करायी, और कुल 42.4 प्रतिशत गर्भवती ने गर्भावस्था के दौरान होने वाली कुल चार प्रसव पूर्व जाँच करायी|

हेल्थ, पोपुलेशन, एंड न्यूट्रीशन जनरल में वर्ष 2019 में प्रकाशित एक शोध- ‘यूटिलाइजेशन ऑफ़ मैटरनल हेल्थ सर्विसेज एंड इट्स डिटर्मिनेंट्स: अ क्रोस- सेक्शनल स्टडी अमंग वीमेन इन रूरल उत्तर प्रदेश, इंडिया’ के अनुसार भी प्रसव के पहले देखभाल और प्रसव के बाद देखभाल, दोनों के लिए, स्वास्थ्य कार्यकर्ता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है| स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादा संपर्क से महिलाओं की एएनसी और पीएनसी का लाभ उठाने की संभावना बढ़ी है।

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