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भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद का उदय सामाजिक मतभेद पैदा कर सकता है

पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनके कार्यकाल के दौरान एक मामूली बयान के लिए भारी आलोचना का शिकार होना पड़ा था. उन्होंने कहा था कि यूपी और बिहार के प्रवासियों (के आने से दिल्ली की बुनियादी ढांचे पर भार पड़ता है. विडंबना ये थी कि शीला दीक्षित खुद दिल्ली में जन्मी पंजाबी थीं, जिनकी शादी यूपी के एक बड़े राजनीतिक घराने में हुई. इस रिश्ते की वजह से आगे उनका राजनीतिक करियर बना और वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.

अब लौटते हैं 2022 में. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एक सार्वजनिक रैली में कह दिया कि वह पंजाब की राजनीति में वे भैया लोगों को सफल नहीं होने देंगे. उनके इस बयान पर वहां मौजूद भीड़ ने जोरदार ताली बजा कर खुशी का इज़हार किया. यह निशाना आम आदमी पार्टी पर था जिसने कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के सामने पंजाब में बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. इसके तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षित 75 फीसदी नौकरी के फैसले को रद्द कर दिया. अदालत ने संविधान में निहित समान अवसर के अधिकार को बरकरार रखा.

शिवसेना पहली पार्टी थी जिसने क्षेत्रवाद को अपना राजनीतिक हथियार बनाया

भारत में क्षेत्रीय गौरव के जरिए कृत्रिम असुरक्षा की भावना पैदा करने की प्रवृत्ति ने एक नये संकट को जन्म दिया है. जिसकी जड़ें अतीत में हैं. शिवसेना पहली पार्टी थी जिसने क्षेत्रवाद को अपना राजनीतिक हथियार बनाया. शिवसेना की राजनीति ‘सबसे पहले मराठी’ के विचार पर आधारित थी. इसका जन्म भारत के सबसे बड़े महानगर मुंबई में हुआ, लेकिन शिवसेना ने 1970 के दशक में दो मुंबई का निर्माण कर दिया. उसके बाद से कई राजनीतिक दलों ने इसी को आधार बना कर राजनीति की.

2022 में पहली बार बाहरी लोगों का गोवा में जमीन खरीदना चुनावी मुद्दा बन गया है. उत्तराखंड में अवैध प्रवास भी एक चुनावी मुद्दा बन गया है. ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब भारत आर्थिक रूप से सबल हो रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 के दशक में गुलाम नबी आजाद को महाराष्ट्र से लोकसभा चुनाव लड़वाया. कर्नाटक के कैथोलिक क्रिश्चियन जॉर्ज फर्नांडिस ने अपना राजनीतिक करियर बिहार में बनाया. शरद पवार अब भी दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. कर्नाटक के रजनीकांत तमिलनाडु के बड़े फिल्मस्टार बन गए. इस वक्त हम भारत के भीतर वैध प्रवास की बात कर रहे हैं.

सीएम चन्नी का बयान उनकी घबराहट को दर्शाता है

भारत वह देश है जो किसी को भी देश के किसी भी कोने में अपने लिए अवसर तलाशने की अनुमति देता है. पूर्वोत्तर के राज्यों और कश्मीर के अलावा देश के बाकी हिस्सों में अंदरूनी प्रवास से राष्ट्र का विकास ही हुआ है. दशकों से बिहार के किसान पंजाब के खेत जोतते आए हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश ने मुंबई की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भारतीय अस्पतालों में मुख्य रूप से केरल की नर्सों की नियुक्ति होती है. तेलुगु के प्रवासियों ने दुनिया भर में भारत का नाम रौशन किया है. भारतीय उद्योग में गुजराती उद्यमी हावी हैं और देश भर के शिक्षण संस्थानों में बंगाल के शिक्षक काम करते हैं.


चुनावी राजनीति से प्रेरित क्षेत्र विशेष के भला करने की प्रवृति का भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. देश के भीतर प्रवास तब तक अच्छा है जब तक कि वह मूल निवासियों की पहचान को नहीं बदलता है. क्षेत्र विशेष का भला करने की प्रवृति भारतीय संविधान के मूल सिद्धांत के भी खिलाफ जाती है. क्षेत्रवाद चुनाव में राजनेताओं को फायदा पहुंचा सकता है मगर आर्थिक और सामाजिक रूप से विनाशकारी हो सकता है. आंतरिक प्रवास राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा है. स्थानीय लोगों के लिए नौकरी के लिए लड़ाई और दूसरे राज्यों के लोगों को चुनाव में हिस्सा लेने से रोकने से सामाजिक असामंजस्य पैदा करेगा. जरूरत इस बात की है कि देश के कोने-कोने में ऑद्योगिक अवसरों का सृजन किया जाए.


विडंबना यह है कि सीएम चन्नी ने क्षेत्रवादी रुख अख्तियार कर लिया है. स्वर्गीय कांशीराम पंजाबी थे मगर उनकी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बड़ा मुकाम हासिल किया. कांशीराम से कभी नहीं पूछा गया कि वह पंजाबी होकर उत्तर प्रदेश में क्या कर रहे हैं. टीएमसी ने गोवा में और शिवसेना ने दादरा नगर हवेली में उम्मीदवार खड़े किए हैं. सीएम चन्नी का बयान कांग्रेस के भीतर मौजूद उस घबराहट को दर्शाता है जो अपने गढ़ में एक नई पार्टी के उदय से असहज महसूस कर रहा हो. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने वाली बीजेपी आखिरी पार्टी है. कुछ क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जरूर हासिल किया मगर वो उस स्तर पर काम नहीं कर सकीं. आम आदमी पार्टी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो क्षेत्रीय बाधाओं को पार कर राष्ट्रीय स्तर पर छाने का दम रखती है. यही कारण है कि सीएम चन्नी क्षेत्रवाद का कार्ड खेल रहे हैं.

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