नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ LGBTQIA+ समुदाय के लिए विवाह समानता अधिकारों से संबंधित याचिकाओं के एक समूह पर विचार कर रही है. सभी पक्षों के वकीलों की ओर से अपनी दलीलें पूरी करने के बाद 11 मई को आदेश सुरक्षित रख लिया गया था.
संविधान पीठ ने 18 अप्रैल को मामले पर सुनवाई शुरू की और करीब 10 दिन तक सुनवाई चली. सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं पर विचार कर रहा है. पहले दायर की गई याचिकाओं में से एक में LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने की अनुमति देने वाले कानूनी ढांचे की अनुपस्थिति का मुद्दा उठाया था.
अदालत ने स्पष्ट किया है कि वह विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत इस मुद्दे से निपटेगी और इस पहलू पर विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ को नहीं छुएगी. एक याचिका के अनुसार, जोड़े ने अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने के लिए एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग की. इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने एक-दूसरे से शादी करने के अपने मौलिक अधिकार का दावा किया. इस न्यायालय से उन्हें ऐसा करने की अनुमति देने और सक्षम बनाने के लिए उचित निर्देश देने की प्रार्थना की.
याचिका का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सौरभ कृपाल ने किया. केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया है और कहा है कि इस मुद्दे पर कोर्ट नहीं बल्कि संसद को विचार करना चाहिए. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कानूनों की पूरी संरचना बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि रखने के परिप्रेक्ष्य से है और गोद लेना विषमलैंगिक जोड़ों के परिवारों में बायोलॉजिकल बर्थ का विकल्प नहीं है.