कर्नाटक हाईकोर्ट शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है. सुनवाई के दौरान वकील शादान फरासत ने मामले में एक आवेदन का जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि जब भी आवश्यकता होगी मैं अपने आधिपत्य की सहायता करूंगा. वकील ने कहा कि अदालत में मैंने एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य इस अदालत के आदेशों का दुरुपयोग कर रहा है. छात्रों को मजबूर किया जा रहा है और राज्य सरकार अधिकारों का घोर दुरुपयोग कर रही है.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि मैं शेष तर्क प्रस्तुत करता हूं. जब उन्होंने अपने तर्कों को पेश किया, तो कर्नाटक के महाधिवक्ता ने उनके बयानों का विरोध किया. कर्नाटक राज्य की ओर से पेश होने वाले महाधिवक्ता ने हस्तक्षेप का विरोध किया और कहा कि रिकॉर्ड पर कोई आवेदन नहीं है और जो बयान दिए जा रहे हैं वे बिना किसी समर्थन के अस्पष्ट हैं. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने तर्क फिर से शुरू किया. कामत ने कहा कि कल अदालत की ओर से लोक व्यवस्था के मुद्दे पर कुछ जरूरी सवाल पूछे गए. इस बात पर असहमति थी कि क्या सरकार में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था है. राज्य ने कहा कि शब्दों के एक से अधिक अर्थ हो सकते हैं और जरूरी नहीं कि इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था हो.
संविधान का कन्नड़ अनुवाद किया पेश
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि मैं कन्नड़ में भारत के संविधान के आधिकारिक अनुवाद हासिल किया है. संविधान का कन्नड़ अनुवाद हर प्रावधान में सार्वजनिक व्यवस्था के लिए उसी शब्द का उपयोग करता है जैसा कि सरकारी आदेश में किया जाता है. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि हम सरकार द्वारा दिए गए आदेश की व्याख्या कर रहे हैं, उसके लिए इस्तेमाल शब्दों की नहीं. स्थापित कानूनी स्थिति यह है कि जब किसी सरकारी आदेश में कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, तो उन्हें कानून में इस्तेमाल किए गए शब्दों के साथ समान नहीं किया जा सकता है. इस पर कामत ने कहा कि मेरा निवेदन है कि सरकारी आदेश में प्रयुक्त शब्दों के दो अर्थ नहीं हो सकते. इसका मतलब केवल सार्वजनिक व्यवस्था है. संविधान में सार्वजनिक व्यवस्था का 9 बार इस्तेमाल किया गया है.
किसी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं पर नहीं उठाया जा सकता है सवाल
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने सरकार के आदेश पर कर्नाटक हाईकोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा. वकील कामत ने कहा कि राज्य या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति से उसकी धार्मिक मान्यताओं पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. इस प्रकार, उसे अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने का पूर्ण अधिकार है. यह देश के आपराधिक कानूनों के अधीन भी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य का कहना है कि सरकारी आदेश में वाक्यांश “सार्वजनिक सुव्यवस्था” का अर्थ “सार्वजनिक व्यवस्था” नहीं है. संविधान का आधिकारिक कन्नड़ अनुवाद “सार्वजनिक व्यवस्था” के लिए “सार्वजनिक सुव्यवस्था” शब्द का उपयोग करता है. मुझे आश्चर्य है कि राज्य ने यह तर्क दिया है.
दक्षिण अफ्रीका के मामले का दिया हवाला
सुनवाई के दौरान कामत ने दक्षिण अफ्रीका में 2004 के सुनाली पिल्ले बनाम डरबन गर्ल्स हाई स्कूल मामले का हवाला दिया. स्कूल ने कहा था कि लड़कियों को ‘नाक में पारंपरिक गहने’ पहनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह स्कूल में आचार संहिता में हस्तक्षेप करेगा. हालांकि, छात्रा ने दावा किया कि यह उनका संवैधानिक अधिकार है. उन्होंने कहा कि फैसले में कहा गया कि ये ड्रेस के बारे में नहीं है. यह इस बारे में है कि क्या कुछ लोगों को ड्रेस की कुछ कठोरता से छूट दी जानी चाहिए. हिजाब कोई छूट भी नहीं है. यह केवल एक एडिशन है. वकील कामत ने दक्षिण अफ्रीका के फैसले के हवाले से कहा, दुरुपयोग की संभावना उन लोगों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करनी चाहिए जो ईमानदार विश्वास रखते हैं.