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आत्मनिर्भर भारत बनाने का संकल्प लेने का पर्व, अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व “दीपावली”

मृत्युंजय दीक्षित


भारतीय संस्कृति में पर्वों का बहुत महत्व है और इनमें भी कार्तिक माह में होने वाला दीपावली पर्व विशेष है पांच दिनों तक मनाया जाने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति के वैभव और ऐश्वर्य का प्रतीक है। दीपावली पर्व में धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक सभी तत्व सम्मिलित हैं। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों दीप अर्थात दीया और श्रृंखला के मिश्रण से हुई है।

कार्तिक माह की अमावस्या के दिन भगवान श्री रामचंद्र 14 वर्ष का वनवास पूरा करके, श्रीलंका के राक्षसराज रावण का वध करके अयोध्या वापस आये थे और योध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीपमालाएं सजाकर महोत्सव मनाया था। दीपावली के एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था। जिससे प्रसन्न होकर जन सामान्य ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। पौराणिक साहित्य के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन नरसिंह का रूप धारण करके हिरण्यकश्यपु का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन से श्रीलक्ष्मी व धन्वतंरि जी प्रकट हुए।

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही मनाया जाता है। अमृतसर में दीपावली के ही दिन 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। 1619 में दीपावली के ही दिन सिक्खों के छठे गुरू हरगोविंबंद सिंह जेल से रिहा हुए थे। स्वामी रामतीर्थ का जन्म और महाप्रयाण दीपावली के दिन ही हुआ था। आर्य समाज की स्थापना करने वाले महर्षि दयानंद का देवलोक गमन भी दीपावली के दिन ही हुआ था ।
दीपावली पर्व का उल्लेख पदम पुराण और स्कन्द पुराण में भी मिलता है।

7वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इस दीप प्रतिपादुत्सव कहा है जिसमें दिये जलाये जाते थे। 9वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्य मीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है। फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरूनी ने भारत पर अपने संस्मरण में दीपावली को कार्तिक महीने में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व कहा है। भारत के पूर्व क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इस अवसर पर माँ काली की पूजा होती है और इसे काली पूजो कहते हैं।

दीपावली से दो दिन पूर्व धन्वन्तरी जयंती तथा धनतेरस का पर्व आता है। इस दिन चिकित्सा विज्ञान से सम्बंधित लोग आयुर्विज्ञान के प्रणेता भगवन धन्वन्तरी की पूजा करते हैं तथा जन सामान्य अपने घरों से सम्बंधित सामान खरीदता है। धनतेरस के दिन पीतल, ताम्बा, कांसा जैसी धातुओं से बने बरतन तथा सोने चांदी से बने आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है।

दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का है इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाये जाते हैं। तीसरा दिन दीपावली का है। इस दिन श्रीलक्ष्मी व गणेश जी की पूजा का विधान है। लोग घर के लिए मिट्टी से बने नये गणेश-लक्ष्मी खरीद कर लाते है तथा उनकी पूजा की जाती है। दीपावली के दिन रात्रि जागरण का भी महत्व है। दीपावली के दिन ज्योतिष के आधार पर लोग साधना करते हैं तथा यंत्र आदि धारण करते हैं। दीपावली का पूजन अपनी सनातन परम्परा के अनुसार ही किया जाता है ।
दीपावली पर्व का चौथा दिन गोवर्धन पूजा का दिन है मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर रख लिया था और ब्रजवासियों की भारी वर्षा से रक्षा की थी। पांचवां दिन भाई दूज या यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहिन अपने भाई के तिलक लगाकर उसके लिए मंगल की कामना करती है।

दीपावली और गाय का महत्व – दीपावली पर्व में पांच दिनो में गौ से सम्बन्धित तीन प्रमुख व्रत पर्व और उत्सव भी होते हैं जिसमें गौवस्त द्वादषी, गोविरात्र ओैर गोवर्धन पूजा। इस प्रकार दीपावली का पर्व गौ -उपासना तथा संवर्धन से भी जुड़ा हुआ है, गाय सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता के समान प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है। उसे लक्ष्मी रूद्राणी ब्राह्मणी आदि देवियों के समकक्ष माना गया है। भविष्यपुराण स्कन्दपुराण महाभारत आदि में गाय के सभी अंगों में देवताओं का निवास कहा गया है। दीपावली गाय के संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा का संकल्प उत्सव भी है।

दीपावली के आर्थिक महत्व को देखते हुए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस उत्सव को आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के साथ जोड़कर “वोकल फार लोकल” का मन्त्र दिया है। स्थानीय उत्पाद खरीदें, स्थानीय कुटीर उद्योगों को बल दें, निकटतम छोटे दुकानदार से खरीददारी करें और भारत का अर्थतंत्र सशक्त करें। प्रधानमंत्री जी के आह्वान का व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। देश के अधिकांश हिस्सों में गाय के गोबर से बने दीये और गणेश -लक्ष्मी की धूम मच रही है। देश का सामान्य जन इस स्वदेशी अभियान में बढ़ चढ़ हिस्सा ले रहा है जिसका प्रभाव बाजारों में स्पष्ट है। चीनी झालर व अन्य सामग्री बाजारों से गायब है। आंकलन है कि इस स्वदेशी जागरण से चाइना को लगभग एक लाख करोड़ रूपए का नुकसान होगा और भारत के मध्यम व्यवसायी को इतना ही लाभ होगा।

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