कलाकारों ने संगीत के सुरों में प्रकट की स्व. बिस्मिल्लाह खां की बसी यादें

- प्रसिद्ध शहनाई वादक स्व. बिस्मिल्लाह खां की याद में लखनऊ में हुआ समारोह
लखनऊ। प्रसिद्ध शहनाई वादक भारतरत्न स्व. बिस्मिल्लाह खां की याद में लखनऊ के ओमेक्स सिटी में शुक्रवार को संगीत समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर बिस्मिल्लाह खां की मानस पुत्री पद्मश्री डॉ. सोमा घोष ने उन्हें अपने सुरों में याद किया। इसके अलावा शहर के संगीत निदेशक केवल कुमार, ठुमरी गायिका मंजूषा मिश्रा, सितार वादक नवीन मिश्रा, संकल्प मिश्रा, केवल अमिताभ ने अपने संगीत से उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की।
समारोह में बिस्मिमल्लाह खां के पौत्र व शहनाई वादक नासिर अब्बास बिस्मिल्लाह एवं जाकिर हुसैन समारोह में शामिल हुए। समारोह के संयोजक कस्टम विभाग में कमिशनर के पद से सेवानिवृत बी.एन. सिंह और राजेश्वरी सिंह थीं। समारोह का आयोजन आमेक्स सिटी के बी-पार्क-1 में किया गया। इस अवस प्रसिद्ध शहनाई वादक की जिंदगी पर बनी डाक्यूमंेट्री फिल्म भी दिखाई गई। वरिष्ठ शास्त्रीय गायिका डॉ. सोमा घोष ने शिव स्तुति से अपने कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने मिरजापुरी कजरी ’हमरी अटरिया में आजा रे सवंरिया, देखा देखी तनिक हुई जाए…प्रस्तुत किया तो श्रोता मंत्रमुग्ध होकर इसको सुना।
इससे पहले लखनऊ की शास्त्रीय गायिका मंजूषा मिश्रा,ने पद्मविभूषण सुश्री गिरिजा देवी जी की निर्मित बनारस घराने की एक प्रसिद्ध दादरा पेश किया, जिसके बोल थे, सांवरिया प्यारा रे मोरी गूईया’…तो श्रोताओं ने तालियां बजाकर उनकी प्रशंसा की। इसके बाद उन्होंने सूफी कलाम ’इस शाने करम का क्या कहना…पेश कर लोगों की तारीफ पाई। अपने गायन में उन्होंने विभिन्न प्रकार की लयकारियां, गायन एवं सितार के स्वरों की जुगलबंदी भी प्रस्तुत की। गायिका के साथ सितार पर डॉ नवीन मिश्रा, तबले पर पंडित विकास मिश्रा ने साथ दिया।
समारोह की अगली प्रस्तुति में ’माटी के रंग’ सितार फ्यूजन थीं। इसमें विभिन्न प्रांतों के प्रसिद्ध धुनों को एक माले के समान पिरो कर पेश किया गया। इसमें राजस्थान का मांड, गुजरात का गरबा, महाराष्ट्र की लावणी और बंगाल का बाउल को मुख्य रूप से शामिल किया था। इसमें भी सितार पर डॉक्टर नवीन मिश्रा व मास्टर संकल्प मिश्रा व तबले पर पं. विकास मिश्रा ने साथ दिया। इसके अलावा अन्य कलाकारों ने भी कार्यक्रम पेश किया।