Pitru Paksha 2025 : श्राद्ध और तर्पण को बनाएंगे खास ग्रहण, पितरों की शांति का दुर्लभ समय, 100 साल बाद बनेगा ऐतिहासिक पल

वाराणसी: इस वर्ष पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) के दौरान एक असाधारण खगोलीय घटना देखने को मिलेगी। लगभग 100 साल बाद पहली बार चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनों उसी पक्ष में पड़ रहे हैं। इस दुर्लभ संयोग के चलते पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्मकांड को धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टियों से विशेष महत्व दिया जा रहा है।
पंचांगों के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हो रही है और यह पिंड दान व तर्पण क्रमशः 21 सितंबर 2025 (पितृ विसर्जन/अमावस्या) तक चलेगा। इसी बीच 7 सितंबर की रात 9:57 बजे चंद्रग्रहण आरंभ होगा और इसका मोक्ष रात 1:27 बजे पर होगा। ग्रहण की कुल अवधि लगभग साढ़े तीन घंटे के आसपास रहेगी। चंद्रग्रहण के सूतक की गणना इसके नौ घंटे पूर्व से मानी गई है, इसलिए इस दिन तर्पण और श्राद्ध कर्मों को सूतक से पहले पूर्ण करने की परंपरा निभाई जाएगी।
दूसरी ओर 21 सितंबर की रात 11 बजे से आरंभ होकर 22 सितंबर सुबह 3:24 बजे समाप्त होने वाला सूर्यग्रहण भी पितृपक्ष के अंत के समय पड़ रहा है। यह सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा, इसलिए यहां सूतक काल लागू नहीं माना जा रहा, पर ज्योतिषीय दृष्टि से इसका महत्व बरकरार है क्योंकि यह कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में स्थित होगा।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय बताते हैं कि काशी के पंचांगानुसार पितृपक्ष तथा संबंधित तिथियों का निर्धारण निश्चित है और इस बार नवमी तिथि की हानि रही है। उन्होंने कहा कि चंद्रग्रहण के सूतक के पूर्व श्राद्ध-कर्मों का संपन्न होना परंपरा के अनुरूप ही सर्वाधिक शुभ माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री का कहना है कि पितृपक्ष में ग्रहण लगना धार्मिक फल को और अधिक प्रभावशाली कर देता है। उनकी व्याख्या के अनुसार इस प्रकार का खगोलीय योग पितरों की शांति व तर्पण कर्मकांडों को विशिष्ट महत्व प्रदान करेगा और परिवारों को इन संस्कारों के प्रति अधिक सजग रहने का संकेत देता है।
धार्मिक नियमों व स्थानीय प्रथाओं के अनुसार ग्रहण के समय कुछ कर्मकांडों पर रोक या सावधानियां बताई जाती हैं; परंतु इस बार चंद्रग्रहण का सूतक स्पष्ट होने के कारण अधिकांश श्राद्धकर्म सूतक से पहले कर लिए जाने का रुझान रहेगा। वहीं सूर्यग्रहण जिसका दृश्य अंश भारत में नहीं दिखाई देगा, धार्मिक क्रियाओं पर औपचारिक प्रतिबंध नहीं लगाएगा लेकिन ज्योतिषीय सलाह के अनुरूप पंडितगण अपनी व्यक्तिगत सलाह दे सकते हैं।
इस वर्ष का पितृपक्ष न केवल श्रद्धा का मामला है बल्कि खगोलीय दुर्लभता के चलते वैज्ञानिक व धार्मिक दोनों ही समुदायों में चर्चा का विषय बना हुआ है। परिवारों से अनुरोध है कि वे पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए समय-सारिणी व सूतक को ध्यान में रखें और आवश्यक धार्मिक कर्म सूचक समय के अनुसार संपन्न कर लें।





