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संघ शताब्दी वर्ष – एक स्वर्णिम सौभाग्य

मृत्युंजय दीक्षित


परमपूज्यनीय डाक्टर हेडगेवार जी ने वर्ष 1925 विजयादशमी के पावन अवसर पर जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शुभारंभ किया गया था आज वह अपने शताब्दी वर्ष का उत्सव मना रहा है। संघ की यात्रा कई अवरोधों का सामना करते हुए कठिन संघर्ष, समाज की सतत सेवा तथा मातृ भूमि के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के साथ इस पड़ाव पर पहुंची है। अनेकानेक स्वयंसेवकों के, “इदं राष्ट्राय इदं न मम” के भाव के साथ नि:स्वार्थ जीवन खपाने से ही संघ शतायु होकर 101 वें वर्ष में प्रविष्ट हुआ है। संघ ऐसे लाखों स्वयंसेवकों वाला वटवृक्ष है जो अपना निजी जीवन त्याग कर समाज व राष्ट्र की सेवा में अपने आपको समर्पित कर देते हैं। संघ के शताब्दी वर्ष उत्सवों के आरम्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ की विकास गाथा का स्मरण करते हुए एक 100 रुपए का सिक्का तथा एक डाक टिकट जारी किया। इस सिक्के पर भारत माता और स्वयंसेवकों का चित्रण है।

सामान्यतः जब कोई संगठन अथवा संस्था 100 वर्ष पूर्ण करती है तो वह भव्य आयोजनों के माध्यम से अपनी प्रशस्ति गाथा गाती है किंतु राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ने ऐसा बड़ा आयोजन न करने का निर्ण्रय लिया और छोटे- छोटे कार्यक्रमों के माध्यम से समाज के प्रत्येक क्षेत्र व हिन्दू समाज के प्रत्येक घर तक पहुंचने का संकल्प लिया। इस हेतु सामाजिक सद्भाव बैठकों का आयोजन, व्यापक गृह संपर्क अभियान, हिंदू सम्मेलन, प्रबुद्धजन गोष्ठी व युवा केंद्रित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा और इनके माध्यम से संघ के विचारों का विस्तार किया जाएगा। शताब्दी वर्ष में इन कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के भाव एक नया प्रवाह दृष्टिगोचर होगा।

संघ की स्थापना अत्यंत कठिन समय में हुई थी जब एक ओर देश अंग्रेजों से लड़ रहा था और दूसरी ओर हिंदू समाज लम्बे समय से भिन्न भिन्न प्रकार से अपनी संस्कृति, संस्कार, ज्ञान, जीवन पद्धति पर हुए आक्रमणों के कारन अपना आत्मबोध खो चुका था, उसका आत्मबल कुंठित था। राष्ट्रीयत्व की दीक्षा देने के लिए हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की। हिन्दू समाज को संगठित करने, उनका स्वाभिमान जगाने के उद्देश्य से संघ की स्थापना की गई। संघ ने अपनी यात्रा में कई उतार चढ़ाव देखे। बार-बार प्रतिबन्ध लगे और आवश्यकता होने पर बार-बार देश सेवा के लिए बुलाया भी संघ को ही गया।

परम पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी के बाद प.पू.माधव सदाशिव गोलवलकर (श्री गुरु जी), प.पू.बालासाहेब देवरस, प.पू.राजेंद्र सिंह ( रज्जू भैय्या), प.पू.के. एस. सुदर्शन जी और अब वर्तमान समय में प.पू.डॉक्टर मोहन भागवत जी के नेतृत्व में संघ एक सदानीरा नदी की भांति आगे बढ़ता हुआ हिन्दू समाज का भाव सिंचन कर रहा है। संघ के सभी सर संघचालकों ने संघ को नया आयाम व विचार दिया है जिसके कारण आज संघ भारत के घर -घर तक पहुँच गया है। संघ के सभी संघचालक अत्यंत योग्य व विद्वान महापुरुष थे जिनके मार्ग दर्शन में संघ ने राष्ट्र व समाज में व्यापक सकारात्मक बदलाव लाने के प्रयास किए । व्यक्ति निर्माण से आरम्भ हुआ यह कार्य शताब्दी वर्ष मे पंच परिवर्तन का महाअभियान हाथ में लेकर आगे बढ़ रहा है।

श्री गुरु जी का कार्यकाल संघ के लिए अत्यंत विषम रहा था किंतु वह कभी भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने संघ कार्य जारी रखा। उनके ही कार्यकाल में स्वयंसेवकों ने समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में हिन्दुत्व का विचार पहुंचाने के लिए अनेक संगठनों की स्थापना की। बालासाहब देवरस अत्यंत कर्मठ थे। वह बहुत ही क्रांतिकारी व खुले विचारों वाले थे। बालासाहब छुआछूत, जातिभेद, खान-पान में विभिन्न प्रकार के बंधनों एवं रूढ़ियों के घोर विरोधी थे। सामाजिक समानता और समरसता से जुड़े सार्वजानिक कार्यक्रम बालासाहब के कार्यकाल से आरम्भ हुए। रज्जू भैय्या तथा सुदर्शन जी दोनों के कार्यकाल में संघ का व्यापक विस्तार हुआ और नये स्वयंसेवक जुड़ने के साथ साथ नये आयाम भी जुड़े।

शताब्दी वर्ष में लिए गए पंच परिवर्तन संकल्प सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी, पर्यावरण संरक्षण व नागरिक कर्तव्य हैं। इन संकल्पों को व्यवहार में लाने से समाज में व्यापक परिवर्तन आएगा। संघ का यह वर्ष त्याग, तप और राष्ट्र आराधना के साथ ही उसकी स्वर्णिम विरासत का वर्ष है।

आज समाज जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां संघ का कोई न कोई स्वयंसेवक कार्य न कर रहा हो । संघ का स्वयंसेवक जहां पर भी होता है उसका एक ही मूल मंत्र होता है और वह है -राष्ट्रप्रथम का का मूलमंत्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार भी राष्ट्र प्रथम की भावना से ही कार्य करती है । वर्तमान समय में जब पूरे विश्व में राजनैतिक व आर्थिक स्तर पर उथल पुथल मची हुई है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता व स्वदेशी का मूल मंत्र दिया है जो संघ का ही मूल मंत्र है। इसका उत्तर स्वदेशी और आत्मनिर्भरता ही है।

संघ शाखाओं के माध्यम से व्यक्ति निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। संघ के कारण ही आज हिन्दू समाज अपने आप को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव कर रहा है।संघ के ही कारण हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान की गूंज चारों ओर सुनाई दे रही है।संघ के कारण ही आज गोपालन की अवधारणा मजबूत हुई है। संघ के कारण हिंदू समाज का मतांतरण कम हुआ है और नई जागृति आई है। संघ की शाखाओं में गाए जाने वाले गीत प्रेरक व व नई उमंग भरने वाले होते हैं। संघ की प्रार्थना भारत माता को समर्पित है।

संघ का एक ही ध्येय है – परम वैभवं नेतुत्मेतत स्वराष्ट्रं …….

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