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भारतीय छात्र अब मेडिकल शिक्षा के लिए किर्गिस्तान की ओर कर रहे हैं रुख

रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव और पाकिस्तान के झूठे वादों के बीच जा रहे है छात्र

नई दिल्ली। पिछले कुछ वर्षों में विदेशों में मेडिकल पढ़ाई को लेकर कई सवाल उठे हैं—कभी युद्ध का साया, तो कभी एजेंटों और बिचौलियों के झूठे वादे। रूस और यूक्रेन जैसे पारंपरिक विकल्पों में जहां युद्ध और अस्थिरता की आशंका बनी हुई है, वहीं पाकिस्तान के कुछ निवेशक किर्गिस्तान में निवेश कर कम फीस का झांसा देकर छात्रों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि ऐसे संस्थानों में न तो ढंग की पढ़ाई होती है और न ही इंटर्नशिप या क्लिनिकल एक्सपोजर जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलती हैं।

इसके उलट, किर्गिस्तान का मेडिकल शिक्षा ढांचा अब धीरे-धीरे पारदर्शी और भरोसेमंद बनता जा रहा है। मध्य एशिया का यह शांत और स्थिर देश अपने व्यवस्थित शैक्षणिक वातावरण, भारत-समरूप पाठ्यक्रम और सुरक्षा के मद्देनज़र भारतीय छात्रों के लिए एक बेहतर विकल्प बनकर उभरा है। दिल्ली, पटना, भोपाल, रायपुर, जयपुर और दक्षिण भारत के कई शहरों से छात्र अब किर्गिस्तान के संस्थानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

पाकिस्तानी निवेशकों द्वारा संचालित कुछ संस्थान, जो किर्गिस्तान में कम फीस में एमबीबीएस कराने का दावा करते हैं, दरअसल छात्रों को सुविधाओं से वंचित करते हैं। सूत्रों के अनुसार, इन कॉलेजों में न तो पर्याप्त बुनियादी ढांचा होता है और न ही आवश्यक मेडिकल इंटर्नशिप की व्यवस्था। ऐसे में छात्रों को एजेंटों के सहारे भेजा जाता है, जिनकी प्राथमिकता केवल वाणिज्यिक लाभ होती है। इसके विपरीत, किर्गिस्तान में कुछ मान्यता प्राप्त संस्थानों ने व्यवस्थित ढांचा विकसित किया है — जैसे कि बिश्केक स्थित इंटरनेशनल हायर स्कूल ऑफ मेडिसिन (आई एच एस एम ), जो भारतीय छात्रों में लोकप्रिय हुआ है।

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि किसी एक कॉलेज के अनुभव को पूरे देश की स्थिति का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता, लेकिन यह संकेत ज़रूर देता है कि यदि सही दिशा में प्रयास हों, तो चिकित्सा शिक्षा के लिए सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण विकल्प उपलब्ध हैं।
मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता का मूल्यांकन केवल फीस या किसी विदेशी मान्यता से नहीं, बल्कि छात्र अनुभव, स्थानीय वातावरण और प्रशिक्षुता की प्रणाली से किया जाना चाहिए।

कुछ संस्थानों में अब भारतीय छात्रों के लिए सुविधाएं विकसित की गई हैं, जिसमें भारतीय खानपान, भाषा सहायता और सांस्कृतिक जुड़ाव शामिल हैं। एक पूर्व छात्रा ने बताया, “विदेश जाकर डर तो था, लेकिन कॉलेज, हॉस्टल और इंडियन मेस की वजह से सब कुछ घर जैसा लगा। पढ़ाई व्यावहारिक थी और अस्पतालों में इंटर्नशिप भी कराई गई।”

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश में पढ़ाई के लिए छात्रों को एजेंटों के माध्यम से नहीं, सीधे कॉलेज से संपर्क कर पारदर्शी प्रक्रिया के तहत दाखिला लेना चाहिए। किर्गिस्तान में अब कई संस्थान इस पद्धति को अपना रहे हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका सीमित हो रही है और छात्रों को बेहतर अनुभव मिल रहा है। किर्गिस्तान में भारतीय निवेशकों द्वारा स्थापित कुछ संस्थानों में भारतीय छात्रों के लिए न केवल अकादमिक सुविधा, बल्कि सांस्कृतिक, भाषाई और मानसिक स्वास्थ्य सहयोग की सेवाएं भी दी जा रही हैं।

यह छात्रों को विदेश में आत्मनिर्भर और सुरक्षित अनुभव प्रदान करता है।किर्गिस्तान में मेडिकल शिक्षा अब केवल शहरी छात्रों का सपना नहीं रहा, बल्कि अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों के छात्र भी इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि, विदेश में पढ़ाई का निर्णय सोच-समझकर, प्रमाणिक स्रोतों से जानकारी लेकर और संस्थानों की सत्यता जांचकर ही करना चाहिए। क्योंकि जहां एक ओर संभावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर भटकाव और छल का खतरा भी बना हुआ है। पाकिस्तानी निवेशकों द्वारा फैलाया जा रहा कम फीस का भ्रम इसका ताजा उदाहरण है। इसलिए, छात्रों और अभिभावकों को सावधानी और समझदारी से रास्ता चुनना होगा—और तभी विदेश में मेडिकल शिक्षा एक सुरक्षित, किफायती और उपयोगी विकल्प साबित हो सकेगी।

Khabri Adda

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