स्वतंत्रता के बाद भारत के पारंपरिक ज्ञान विज्ञान की उपेक्षा हुई : जयंत सहस्त्रबुद्धे
- विज्ञान और अध्यात्म को साथ-साथ चलने की आवश्यकता
लखनऊ। हमारे वैज्ञानिकों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जो लड़ाई शुरू की थी और देश में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के पुनरुत्थान के लिए जो उनकी कल्पना थी आजादी मिलने के बाद वह यात्रा काफी हद तक उसी से अलग हो गई। इससे हमारे समाज का सर्वांगीण विकास प्रभावित हुआ। स्वतंत्रता के बाद भी हम अपने पारंपरिक ज्ञान के विशाल संसाधनों को निष्पक्ष रूप से देखने और प्रासंगिक पाठों को आत्मसात करने में विफल रहे हैं। यह बातें विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री जयंत सहस्त्रबुद्धे ने रविवार को विज्ञान भारती के पांचवें राष्ट्रीय अधिवेशन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कही। दो दिवसीय अधिवेशन लखनऊ के डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ।
जयंत सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हमारे वैज्ञानिक बहुत कम संसाधनों और सभी बाधाओं के बावजूद विश्व स्तरीय शोध कर सकते थे। कई बार शोध के लिए आवश्यक उपकरणों को भी स्वयं ही विकसित किया जाता था। 1930 में भौतिकी के क्षेत्र में चंद्रशेखर वेंकण रमन द्वारा जीता गया प्रथम एशियाई और पहले गैर-श्वेत व्यक्ति के लिए विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार एक उदाहरण है।
सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि आचार्य जगदीश चंद्र बसु यह कहने में स्पष्ट थे कि ‘भारत के ऋषि हमेशा इसके बारे में जानते थे’ और विज्ञान और अध्यात्म को साथ-साथ चलने की आवश्यकता का समर्थन करते थे। कोरोनाकाल में आयुर्वेद ने यह सिद्ध किया है। हम राष्ट्रीय भाषाओं में विज्ञान पढ़ाने की आवश्यकता को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में भी विफल रहे हैं। जगदीश चंद्र बसु और प्रफुल्ल चंद्र रे उसी के बहुत प्रबल समर्थक थे।
डॉ चामू कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमारा देश एक औद्योगिक समाज था और हमारे पास औद्योगीकरण का एक भारतीय मॉडल था। 1916 में औद्योगिक आयोग के हिस्से के रूप में महामना मालवीय का प्रसिद्ध नोट उसी का विवरण सामने लाता है। हमारे वैज्ञानिक औद्योगीकरण के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की आवश्यकता का भी पूर्वाभास कर सकते थे।
अधिवेशन में निम्नलिखित बिन्दुओं पर हुई चर्चा
- 1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक वैश्विक नेता
- 2. एक औद्योगिक बिजलीघर
- 3. भारतीय लोगों की समस्याओं का समाधान प्रदाता
- 4. भारतीय पारंपरिक ज्ञान से सबक लें
- 5. विज्ञान और अध्यात्म के बीच तालमेल रखें
- 6. एक नवाचार और ज्ञान केंद्र
- 7. एक सहजीवी उद्योग संस्थान बातचीत करें
- 8. हमारी अपनी भाषाओं में विज्ञान शिक्षा पर जोर दें
अवध प्रान्त के संगठन मंत्री श्रेयांश मांडलोई ने बताया कि दो दिवसीय अधिवेशन में देश के सभी प्रान्तों से 600 प्रतिनिधि आये थे।