जगतगुरु रामभद्राचार्य द्वारा श्री राम और भरत का मिलन कराने से धन्य हुई गौरीगंज की धरा।
गौरीगंज में चल रही प्रभु श्री राम की दिव्य कथा का आज बीता आठवां दिन
अमेठी जनपद मुख्यालय गौरीगंज स्थित श्री रणंजय इंटर कालेज के खेल मैदान पर भाजपा नेता डॉ अनिल त्रिपाठी व प्रकाश मिश्र के संयोजन में चल रही दिव्य श्री राम कथा के आठवें दिन स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि भैया भरत का चरित्र बड़ा महान है। भरत चरित्र के वर्णन में भरत जी चौदह वर्ष में चौदह बार ही बोलते हैं।
उन्होंने रामचरित मानस की चौपाई से भरत जी व श्री राम के बारे में तुलसीदास दारा लिखित भरत पयोधि गंभीर व कृपा सिंधु रघुवीर को उठाकर व्याख्या करते हुए बताया कि जैसे देवताओं ने समुद्र मंथन कर चौदह बस्तुओं के साथ एक बार अमृत पाया लेकिन भरत पयोधि माने भरत रूपी समुद्र व कृपा सिंधु रघुबीर माने राम रूपी कृपा के समुद्र के मंचन में चौदह बार अमृत वर्षा है । कैकेयी के द्वारा राम वन गमन और अपने राज्याभिषेक की बात सुन उन्होंने माता कैकेयी से कहा कि आपकी सूचना उसी प्रकार है कि तालाब के जल को उलच कर सूखा कर देने के बाद मछली को बिना जल के रहने के लिए कहा जाय व इसी प्रकार पेड़ की सभी शाखायें काटकर फल प्राप्त खाने के लिए कहा जाय।
पहली बार बोलते हुए इतना कहकर उन्होंने कैकेयी को 14 वर्षों के लिए त्याग दिया और माता कौशल्या के साथ रहने लगे, यह उनकी चरित्र की पहली अमृत वर्षा है। दूसरी बार बोलते हुए उन्होंने कैकेयी पर व्यंग्य करते हुए कहा कि पिता जी के दर्शन करा दीजिए। भरत जी का कहा एक मार्मिक गीत के रूप में गाते “चित्रकूट जाने को जी चाहता है, चित्रकूट में राम बसत हैं, रामजी में रम जाने को जी चाहता है” उन्होंने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। “भरत चले चित्रकूट हो, रामा राम को मनाने” और श्रृंगवेरपुर में केवट के द्वारा “भरत भैया चला तुहके देखाई” जैसे गीतों पर श्रोताओं और स्वयं स्वामी रामभद्राचार्य जी की आंखे सजल हो उठी और वातावरण बड़ा ही भावुक हो गया।
भरत जी राम जी के चार घोड़ो में से सबसे प्रिय घोड़े का ज़िक्र किया और बताया कि उसने कुछ भी खाना पीना बंद कर दिया था और जहां रुकते तो वहां श्री राम को न देख रोने लगता तो भरत जी उसे राम के दर्शन कराने की सांत्वना देने लगते। भरत जी ने प्रयाग में त्रिवेणी संगम में स्नान नहीं किया, कारण के रूप में उन्होंने बताया कि त्रिवेणी संगम में भी वही सरस्वती जी गुप्त रूप में विद्यमान हैं जिन्होंने माता कैकेयी की मति फेर दी थी, यदि मैं नहा लूंगा तो मेरी भी बुद्धि फिर सकती है। आगे भरत ने कहा कि राजा, जोगी, बेटी, इनका खाली हाथ न भेंटी, गंगा और यमुना मेरे परिवार की ही बेटियां हैं, अब मेरे पास अपना तो कुछ नहीं है, खुद सन्यासी हो भीख मांग कर बसर कर रहा हूँ तो इनको क्या देकर मिलूं। “अर्थ चाहिए न धर्म, काम चाहिए। कौशल्या कुमार मुझे राम चाहिए।। गीत के माध्यम से एक बार उन्होंने फिर जनसमुदाय को भक्ति भाव से रासबोर किया। राम को वन से वापस लाने के निकले भरत के भारद्वाज आश्रम से चित्रकूट तक के प्रसंगों को सजीव चित्रण करते स्वामी जी कई बार रो उठे। “कौन बृक्ष तर भीजत होइहैं, सीय सहित दोउ भाई” जैसे गीत ने जहां माहौल को भावुक बनाया वहीं “चौदह भुवनों में आज जयजयकार हो गई, भैया भरत की आज बलिहार हो गई” गीत पर वातावरण एक बार भैया भरत व जय श्री राम के जयकारों से गुंजायमान हो गया।
इस कार्यक्रम के आयोजक डॉ अनिल त्रिपाठी व प्रकाश मिश्र ने सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कथा में लगातार उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया। आज की कथा सुनने व रामभद्राचार्य का आशीर्वाद लेने के लिए जिले के प्रभारी मंत्री मोहसिन रजा भी उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि बड़ा सुंदर संयोग है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू और अमेठी में रामभद्राचार्य की कथा अमृत की वर्षा हो रही है और इनकी अगली कथा होते समय भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जायेगा। कथा में इसौली सुल्तानपुर के पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री जय नारायण तिवारी आदि उपस्थित रहे।