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MP में हारे हुए मोहरों पर दांव, जाति की पिच पर BJP ने बिछाई बिसात

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट गुरुवार को जारी कर दी है. मध्य प्रदेश की 39 सीटों पर और छत्तीसगढ़ की 21 सीटों पर कैंडिडेट उतार दिए हैं. यह वह सीटें हैं, जहां कांग्रेस का कब्जा है और बीजेपी की स्थिति कमजोर है. इसके चलते ही बीजेपी ने चुनाव ऐलान से करीब ढाई महीने पहले उम्मीदवारों की घोषणा करके बढ़त बना ली है, लेकिन साथ ही साथ पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने सीट के जातीय और सियासी समीकरण को साधने की कवायद की है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी की यह बदली हुई रणनीति क्या मध्य प्रदेश में रिपीट और छत्तीसगढ़ में वापसी करा पाएगी?

कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी का सेंधमारी प्लान

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की अभी तक औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन बीजेपी ने 39 सीटों पर कैंडिडेट के नाम का ऐलान कर दिया है. यह 39 सीटें वो हैं, जहां पर पिछले दो-तीन विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ रहा था. इन सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि बीजेपी के लिए ये सीटें कमजोर मानी जा रही थी. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व ने पहली बार चुनाव से ढाई महीने पहले उम्मीदवार उतारकर बड़ा सियासी दांव चला है ताकि कांग्रेस के मजबूत दुर्ग में सेंधमारी की जा सके. कांग्रेस के कब्जे वाली इन सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए पर्याप्त समय है.

जातीय समीकरण साधने की कवायद

बीजेपी ने उम्मीदवारों के जरिए मध्य प्रदेश के जातीय समीकरण को साधे रखने की कवायद की है. बीजेपी के 39 सीटों के टिकटों की फेहरिश्त को देखें तो 13 अनुसूचित जनजाति, 8 दलित, 13 ओबीसी और 5 टिकट सामान्य वर्ग के उम्मीदवार उतारे हैं. एमपी में सबसे ज्यादा ओबीसी और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स हैं, जिनका पूरा ख्याल रखा है. मध्य प्रदेश में 54 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं, जबकि आदिवासी 21 फीसदी हैं और 16 फीसदी दलित हैं. टिकटों का वितरण देंखें तो 39 सीटों के लिहाज से ओबीसी और आदिवासी समुदाय के 33-33 फीसदी टिकट दिए गए हैं. दलित समुदाय के 20 फीसदी और सामान्य जाति के 13 फीसदी उम्मीदवार उतारे हैं. बीजेपी ने 5 महिलाओं को भी उम्मीदवार बनाया है.

बीजेपी ने मध्य प्रदेश में भले ही एससी और एसटी समुदाय के लोगों को सिर्फ रिजर्व सीट पर ही उम्मीदवार बनाया हो, लेकिन पार्टी का फोकस ओबीसी और एसटी वोटों है. शिवराज सिंह चौहान से लेकर अमित शाह और पीएम मोदी तक ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय को भी साधने की कवायद में जुटे हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी को आदिवासी और दलित सीटों पर करारी मात खानी पड़ी थी, जिसके चलते पार्टी इस बार कोई सियासी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है.

पुराने, नए और युवा चेहरों का संतुलन

बीजेपी के पुराने और नए चेहरों के बीच बैलेंस बनाने की कोशिश की है. बीजेपी ने 2018 के चुनाव में हारे हुए 14 उम्मीदवारों पर एक बार फिर से दांव खेला है तो 12 नए चेहरों को भी प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा बीजेपी ने छह ऐसे कैंडिडेट पर भरोसा जताया है, जो 2013 में चुनाव लड़े थे, लेकिन 2018 में टिकट नहीं मिला था. बीजेपी ने 2018 में हारने वाले चार मंत्रियों को एक बार फिर से चुनावी रण में उतारा है, जिनमें ओम प्रकाश धुर्वे, ललिता यादव, नाना भाई मोहोड़ और लाल सिंह आर्य शामिल हैं. इसके अलावा बीजेपी के 39 प्रत्याशियों में से 14 नेता ऐसे हैं, जिनकी उम्र 50 साल से कम है. इस तरह बीजेपी ने 14 युवा नेताओं को भी मौका देकर सियासी बैलेंस बनाने की कोशिश की है.

हारे मोहरों से बाजी जीतने का प्लान

बीजेपी ने कांग्रेस के दुर्ग को भेदने के लिए उन्हीं चेहरों पर दांव लगाया है, जिन्हें हार मिलती रही है. बीजेपी की 39 कैंडिडेट की पहली सूची में 50 फीसदी ऐसे नेताओं को टिकट दिए हैं, जिन्हें पिछले चुनाव में हार मिली है. राऊ से मधु वर्मा, गोहद से लाल सिंह आर्य, छतरपुर से ललिता यादव, कसरावद से आत्माराम पटेल, पथरिया से लखन पटेल गुन्नौर,सौंसर से नाना भाऊ मोहोड़, शाहपुरा से ओमप्रकाश धुर्वे,पेटलावद से निर्मला भूरिया, झाबुआ से भानू भूरिया, चित्रकूट से सुरेंद्र सिंह गहरवार, भैंसदेही से महेंद्र सिंह चौहान, महेश्वर से राजकुमार मेव, आलीराजपुर से नागर सिंह चौहान और जबलपुर पूर्व से अंचल सोनकर को उतारा है. ये सभी बीजेपी को वो कैंडिटेट हैं, जिन्हें 2018 में शिकस्त खानी पड़ी है. लखन पटेल 2018 में पथरिया सीट पर बसपा प्रत्याशी रामबाई सिंह से हार गए थे. इस तरह से बीजेपी ने हारे हुए मोहरों के सहारे 2023 की जंग जीतने की कवायद की है.

सिंधिया के साथ हो गया सियासी खेला

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिय के साथ पार्टी ने क्या खेला कर दिया है. सुमावली से सिंधिया समर्थक एंदल सिंह कंसाना पर एक बार फिर से भरोसा जताया है, लेकिन गोहदा सीट से विधायक रहे रणवीर जाटव को प्रत्याशी नहीं बनाया गया है. रणवीर जाटव भी सिंधिया के साथ बीजेपी का दामन थामे थे. बीजेपी ने जाटव की जगह लाल सिंह आर्य को टिकट दिया है. सिंधिया के करीबी जाटव की तरह कंसाना भी 2020 के उपचुनाव में करारी मात खानी पड़ी थी. सिंधिया के साथ बीजेपी में आए तमाम नेता घर वापसी कर रहे हैं. ऐसे में जाटव का टिकट कटने से सिंधिया खेमे को तगड़ा झटका लगा है.

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